वाबस्ता.................
हर कोई किसी ना किसी से ज़ड़ा हुआ है, चाहे - अनचाहे बंधा हुआ है, कोशिश कर लो कितना ही छुड़ाने की, बांधने वाले ने बड़ी तसल्ली से पकड़ रखा है.
वो और हम..............
उसका नाम बदल देता है, उसके आगे सब फिका लगता है, शांति के करीब वहीं तो ले जाता है, सुकून से वो राब्ता कराता है.
कभी तो...............
माना कि हम सबकुछ कर सकते है, हर चीज़ को हासिल कर सकते है, पर कभी तो ड़रना भी चाहिए, गलत सोच और गलत काम से गुरेज़ करना भी चाहिए.
मैं रेत की तरह ...........
कमाल है ऐ रेत भी, चमकती है ऐ रेत भी, दर्पण है समाज का कहानी कहती है रेत भी, साहिल का किनारा इसका है सारा, बदलती है खुद को ऐसे जैसे पूरा जहान है इसका, सारा का सारा.
मैं गुस्सा.................
खराब वक्त की घंटी हूँ मैं, तबाही की दस्तक हूँ मैं, हर शय है घर मेरा, भगाओं मुझे नहीं तो खा जाऊँगा मैं.
उसकी हर बात जुदा..................
तू है तो सब कुछ है, तू साथ है तभी तो सारी बात है, रात की चांदनी है तुझसे, मेरी सुबह भी तुझसे ही गुलज़ार है.
सर्दी का साथ................
ना किसी से शिकायत है, ना किसी को कम आंकते है, हम कायल है सर्दी के बस इतना ही हम जानते है.
"मुझे मेरी फिक्र हैं"
माना कि मैं हमेशा शांत नहीं रहता, मगर पहले जितना जिंदादिल भी नहीं रहता, बेपरवाही मेरी ही पहचान है, अब देखों मैं मौसम खुद से ही अंजान है.