जो मैं हूँ वैसा मैं दिखता नहीं हूँ, जो मैं नहीं हूँ शायद मैं वैसा दिखने लगा हूँ,
जो पहले था वो अब मैं नहीं हूँ, बदल गया है मुझमें बहुत कुछ शायद,
तलाश जारी है उसे खोजने की, पहले पता तो चले क्या खो गया है मुझसे,
क्या ढूढ़ रहा हूँ मैं खुद में,
रेत की तरह समय भी फिसल रहा है, लम्हा - लम्हा ज़ाया हो रहा है,
ज़िन्दगी का पता नहीं कहाँ जा रही है, जहाँ भी जा रही है हमें साथ लेकर जा रही है,
जहाँ पर हैं वहां रहने का मकसद पता नहीं, सोच रहे है बहुत कुछ पर खुद के हिसाब से कुछ हुआ नहीं,
सब्र की रस्सी भी कमज़ोर हो रही है, मेरे भीतर की उम्मीद धीरे - धीरे खत्म हो रही है,
रेत से यारी बहुत पुरानी है हमारी, साहिल पर टीले बनाने की कला है हममें न्यारी,
कमज़ोर रेत हमेशा ही नदी के आगे हार जाती है, तभी तो इंसानी मेहनत की कद्र नहीं करती,
एक दफा आती है और सब कुछ बहा ले जाती है, रेत का मिज़ाज भी इंसानों जैसा है,
जहाँ ज़िन्दगीनुमा नदी ले जाती है रेत भी उसके साथ राज़ी या गैरराज़ी चली ही जाती है.
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