"दहलीज़ को इंतज़ार"
खामोश चीज़े भी बात करती है, हमसे पूछों कितने सवालात करती है, ऊबने नहीं देती किसी को कभी, ना जाने कैसी - कैसी बात करती है.
"किसानों का दर्द "
जो खुद मेहनत करता है, लाखों का पेट भरता है, लगन देखों उसकी, ना थकता है और ना ही शिकायत करता है, सब्र कर हर सफर पार करता है.
ढ़लता सूरज.................
छुप गया वो भी हमसे परेशान हो कर, मद्धम पड़ गई उसकी रोशनी हमसे मिलकर, ना जाने क्यों सारी कायनात हमसे खफा हो गई, दुआ भी लगती है हमसे नाराज़ हो गई.
जीने दो..................
हमने कब कहा कि हमें कोई चाहिए, किसी की नसीहत या फिर किसी की मदद चाहिए, रहने भी दो दिखावे कि ज़रूरत ही क्या है.
पहली मुलाकात .....................
उससे मेरी और मेरी उससे पहली मुलाकात. वो एक शहर है जो ना जाने कितनों का है, मैं एक नया मुसाफिर हूँ उसका जो शायद अब मेरा भी घर है, वो रखेगा तो रह लेंगे नहीं तो कुछ यादें जोड़ वहाँ से भी चल देंगे.
संगीत..........
कोई कम जानता है, कोई ज़्यादा जानता है, लेकिन एक संगीत है, जो सबको पहचानता है.
घर...........
जज़्बात भी है, एहसास भी है, हर कोना मेरे लिए खास भी है, जब भी लौटते है घर वो ऐसे पास बुलाता है, सूरज छुप जाता है तब तक, लेकिन घर हमें चारों ओर से झांकता है.
इसके बाद............
आज और अभी है, ज़िन्दगी इसी में तो सिमटी है, जो भी हो बस खुश रहो, जिसने दी है उसे शुक्रिया कहो.