समय का कर्म............
संवारने को आऊँ तो ज़मीन के तिनके को भी आसमान पर टांग दूँ, मैं समय सबका नसीब संवार दूँ, ना हुक्म सुनता हूँ ना अर्ज़ी, मन का मालिक हूँ मैं एक जगह टिकता भी नहीं मैं.
ऐ कहाँ आ गए हम..............
सब जानते है फिर भी सवाल करते है, क्यों है यहाँ ऐ भी पूछते है, पहचानी जगह भी अब, पहचान मे नहीं आती, क्यों इस कदर अनजान हो गए हम.
"धागे की कहानी उसकी ज़ुबानी"
मेरी खूबसूरती इसी में है कि हर कलाई में सजूं मैं, चोहे किसी भी रंग में या रूप में, सबमें ज़िन्दा रहूं मैं.
"ज़िन्दगी"
हौंसला भी तू, कमज़ोरी भी तू, तुझे जीना चाहते है, तुझे जानना चाहते है, तेरी कसम तुझे बेहद चाहते है.
ग़मगीन है.................
खत्म नहीं होता ग़म, बस गुज़र जाता है, अगले ही पल में वापस आ जाता है, माना कि तेरे ना होने से खुशी का एहसास कैसे होगा, पर तू भी सोच तेरे साथ लम्बें अर्से तक जीना कितना मुश्किल होगा.
बचा लो मुझे...............
पुकारती है, कराहती है, ये आवाज़ भी लगाती है, सुनों इसे ध्यान से ये अपनी कहानी सुनाती है, परेशान इंसान ही नहीं ये भी है, सिमट रहा है इसका अस्तित्व क्या इस पर हमने ध्यान दिया कभी.
लहरे..............
मौज - मस्ती भी इसकी पहचान है, शांत रहना भी इसका काम है, मूड़ तो ऐसे बदलती है, जैसे इनमें भी जज़्बात है.
वो एक दिन..............
वो एक दिन उम्मीद का, वो एक दिन इंतज़ार का, वो एक दिन सपनों के पूरे हो जाने का, वो एक दिन मेरे खुद में ही मिल जाने का.