ग़मगीन है.................

खत्म नहीं होता ग़म, बस गुज़र जाता है, अगले ही पल में वापस आ जाता है, माना कि तेरे ना होने से खुशी का एहसास कैसे होगा, पर तू भी सोच तेरे साथ लम्बें अर्से तक जीना कितना मुश्किल होगा.

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rashi sharma
rashi sharma 08 Aug, 2022 | 1 min read

खुश तो बहुत कम रहता है, इंसान मायूस ज़्यादा रहता है,

बात नहीं करता लोगों से आजकल खामोश ज़्यादा रहता है,

पूछों तो कहता है कुछ नहीं फिर भी कुछ ना कुछ तो सोचता है,

दिखाता है लोगों को हंस कर, असल में तो वो सदा ही ग़मगीन रहता है,


ना जाने कौन सी परेशनी उसकी कुंड़ी खटखटा रही है,

बैठी रहती है दरवाज़े पर ना जाने क्या चाहती है,

इंसान भी झरोखें से झांक कर उसके जाने का इंतज़ार करता है,

असहनीय है उसका दर्द तभी तो भागा - भागा फिरता है,

आराम चाहता है, सुकून चाहता है,

इस आते - जाते ग़म से आज़ादी चाहता है,


हे प्रभु, ना जाने किस गलती कि सज़ा है ऐ जो खत्म नहीं होती,

ज़िन्दगी जीने नहीं देती और मौत मरने नहीं देती,

खुल के साँस नहीं आती, बैचेनी इतनी है कि नींद नहीं आती,

खौफ का आलम तो देखों रो देते है उसके आने पर,

एक वो है जिसको मेरे रोने की आवाज़ नहीं आती.

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rashi sharma

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