उठती है, गिरती है लहरे भी रंग बदलती है,
कदमों को छूती है और रेत बहा ले जाती है,
साहिल से टकराती है और खूब शोर मचाती है,
संग लाती है ठंड़ी हवा और मन को खुश कर जाती है,
खुश होती है लहरे तो संयम के साथ बहती है,
खेलती है लोगों के साथ और खुल कर बातें करती है,
लेहरों के पीछे लहरों का कारवां चलता है,
इंसान की तरह इन्हें भी पकड़म - पकड़ाई का खेल अच्छा लगता है,
सूरज भी तो समंदर के दीदार के साथ छुपता है,
जब उगता है तो उसकी लहरों को नमस्कार करता है,
रात को सारी खूबसूरती खुद में समेट लेता है,
तभी तो भीड़ को अपनी ओर आकर्षित करता है.
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