दहलीज़ और दरवाज़े दोनों बेकरार है,
बंद हो जाए तो खुलते नहीं,
दोनों को ही नए चेहरे का इंतज़ार है,
मुझसे ज़्यादा उसको इंतज़ार है, किसी के आने का,
ना रूके कम से कम दस्तक तो दे खुद के आने का,
अरसा बीत गया किसी से मिले हुए,
क्या वो भी भूल गया कि उसके इंतज़ार में है हम,
दहलीज़ पर आँखें जमाए हुए,
जिस दिन कोई आएगा मुझे भी सूकुन आ जाएगा,
तन्हा नहीं है इस घर में रहने वाला मुझे यकीन आ जाएगा,
घर का मालिक भी चौखट पर बैठ कर सबको ताकता रहता है,
मुझसे बात करता है और मुझे ही देख कर मुस्कुराता रहता है,
दोनों होते है साथ फिर भी अकेले है,
कई रात सोए नहीं हम ना जाने क्यों जगे हुए है,
परेशानी क्या है दोनों को ही पता नहीं,
लेकिन इंतज़ार है किसी मुसाफिर का,
जो दरवाज़ा खटखटाए और रह जाए यहीं.
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