Sumita Sharma
Sumita Sharma 15 Jul, 2020 | 1 min read
खिलौने जो ज़िंदा थे

खिलौने जो ज़िंदा थे

वर्मा दम्पत्ति बेजान लैपटॉप के आगे घँटों से बैठे थे और कभी नेटवर्क का मामला तो कभी नींद का जोर पर आस थी कि शायद बच्चे ऑनलाइन आ जायें, पर सब व्यर्थ रहा। बरसों से रोज़ यही क्रम बना था,निशा को अक्सर मोहन यही समझाते कि हमारे खिलौने यही दोंनो हैं क्योंकि अपना बचपन तो कागज़ की नाव ,पतंग और कपड़े की गुड़ियों से ही निकल गया। अक्सर दोनों बाजार जाते तो त्योहारों पर  न जाने कितने खिलौने उठा लाते । इस आस में कि शायद  किसी रोज़ उन्हें खेलने वाले आयेंगे ,कभी आते तो उन्हें उन सबमें कोई दिलचस्पी भी न महसूस होती। धीरे धीरे व्यस्तता का अजगर वो पल भी निगल गया बची तो जीवन मे बस एक निस्तब्धता। अब तो त्यौहार भी बस उदासी में निकलने लगे  एक दिन मायूस पत्नी को समझाते हुए मोहन ने कहा ,"निशा क्यों न हम उन्ही खिलौने को बनाये जो हम बचपन मे खेलते थे। एक दो कागज़ की नाव और कपड़े की गुड़िया सुबह की सैर पर किसी कूड़े के ढेर में आजीविका खोज़ते बच्चों में बचपन की चिंगारी चमका देते। अब दोनों का ग़म कुछ छँटने लगा था,त्यौहार पर इस बार बच्चे आये तो दोनों वृद्ध खुश हुए । उन्हें वहीँ बसने के लिए पैसों का बंदोबस्त भी चाहिये था पिता से, उनकी मशीनी ज़िन्दगी और आधुनिक सोच ने ये भरम भी तोड़ दिया कि ,वो उनके बच्चे हैं। जैसे आये थे दोनों बेटे,वैसे ही एक हफ़्ते बाद चले भी गए । पर अब निशा और मोहन को उनके ऑनलाइन आने का इंतजार  न था। थके मन और परेशान दिमाग़ लिए दोनों ने सोना पसन्द किया,अगले दिन सारे खिलौने बटोर कर ले गए अनाथ आश्रम ।उनके इस कदम ने न जाने कितने जीवित खिलौनों में रौनक भर दी थी। बेजान खिलौनों (लैपटॉप और फ़ोन)पर निर्भरता अब कम हो चुकी थी।रोज दोनों वहीं आते और थक कर चैन की नींद सोते। एक दिन पुराना एलबम अलमारी में निकला तो निशा ने यह कहकर उसे ट्रंक में डाल दिया,"कि ये खिलौने कभी ज़िंदा थे ,चलिए अभी अनाथ आश्रम ही चलते हैं। अब खिलौने और खेलने वालों के किरदार बदल चुके थे।

Reactions 0
Comments 0
645
Tejeshwar Pandey
Tejeshwar Pandey 12 Jul, 2020 | 1 min read

✍ कहानियाँ और भूखा पेट।

कहानियाँ सुन - सुना कर अपना भूखा पेट भर लेते है !

Reactions 1
Comments 0
704
Charu Chauhan
Charu Chauhan 11 Jul, 2020 | 1 min read

"मैं स्त्री हूँ "

एक स्त्री कमजोर नहीं होती।

Reactions 2
Comments 3
979
Tejeshwar Pandey
Tejeshwar Pandey 11 Jul, 2020 | 1 min read

✍ जीवन है कठपुतली ।

मैं कोई कठपुतली नहीं, मैं भी एक इंसान ही तो हूं।

Reactions 2
Comments 4
696
umesh kushwaha
umesh kushwaha 10 Jul, 2020 | 0 mins read

सेवा के रूप

दूसरन के लाने अच्छओ सोचबो भी एक सेवा है

Reactions 1
Comments 0
596
Jyoti agrawal
Jyoti agrawal 10 Jul, 2020 | 1 min read

विश्वास करो! मैं एक डॉक्टर हूं..

डॉक्टर को इंसान ने ऐसे ही भगवान की उपाधि नहीं दी। दी है अब तो उसे पूरा करना सभी डॉक्टर मा फ़र्ज़ है।

Reactions 0
Comments 1
645
Kusum Pareek
Kusum Pareek 09 Jul, 2020 | 1 min read

कैक्टस

वृद्धावस्था में जब तेज आवाज भी कानो को भारी लगती है और युवा लडको के शोरशराबा से कोफ्त होती है ,एक दिन अहसास होता है ली वे बच्चे ही उनकी खुशियां है

Reactions 0
Comments 0
523