निरुद्देश्य भटकते हुए मैं एक वीरानी सी हवेली में छुप कर बैठा रो रहा था और अपने अंजाम पर दुःखी भी हो रहा था कि अचानक रोशनी अपने आप होने लगी और वह किसी रजवाड़े सी सज उठी ।
अब वहाँ तमाम अंजान की लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो गयी,और जिस कोने में मैं बैठा था वहाँ से हटाने की क़वायत भी।
हटो यहाँ से यह मेरी जगह है ,और मैं धीरे धीरे हटता जा रहा था तब तक किसी एक व्यक्ति को मेरे ऊपर तरस आ गया।
"लगता है,"तुम नए नए भूत बने हो"?
क्या....भूत! मैंने सिर उठाकर ,आश्चर्य से उसकी ओर देखकर कहा ...मैं भूत नहीँ मेरा नाम निखिल है?
अब तुम मर चुके हो और मैं भी हम सब भूत हैँ यहाँ पर,और अब तुम भी हमारे जैसे हो।
मैं अब भी मानने को राज़ी न था और धीरे-धीरे उनके जैसी गतिविधियों को अपने जैसी पाकर अब समझौते के सिवा कोई विकल्प भी न बचा था।
काफ़ी समय बाद जब अपनी नियति समझ पाया तो मैंने उसके पास जा कर कहा ,"कि आप सच कह रहे थे मैं अब भूत ही हूँ शायद...
"सही समझा तुमने; यहाँ ऐसे ही लोग रह रहे हैं",उसने निराशा पूर्ण स्वर में कहा ,और मैं अविश्वास के साथ उसकी बात सुन रहा था ।
"यहाँ हर कोई ऐसा ही है जो या तो ज़िन्दगी से हार मान बैठा या किसी दुर्घटना का ग्रास बन गया,तुम्हारे साथ क्या हुआ था"उस ने पूछा?
मैंने उसे दुःखी होते हुए बताया कि" मैं एक होनहार मेडिकल छात्र था और प्रेम में पड़ गया था प्रेमिका पूजा की दूसरी जगह शादी तय होने की खबर और उसके दूरी बना लेने के कारण मैंने मौत को गले लगा लिया।"
एक झटके में मैंने सबके अरमान तोड़ दिए मुझे उस हाल में देखकर, मैं खुद अपने शरीर में वापस जा कर सबके आँसू पोंछना चाहता था पर शायद ईश्वर के यहाँ ऐसी मूर्खता की कोई माफ़ी नहीँ होती।
उसने सिर हिलाकर मेरा समर्थन किया ।
मैं दोबारा अपने घर गया माँ,उदास थीँ ;पापा टूट गये थे और छोटी बहन मिनी जिसे माँ मेरे डॉक्टर बनने का आसरा देकर मेरी मदद करवाती थीं।अब वह चुलबुली गुड़िया जिसे मैं रोब में लेकर अपने प्रोजेक्ट्स करवाता था अचानक बड़ी हो गयी थी।
मेरी याद बस कायर की हो गयी थी,जब मैंने दूसरों को यह कहते हुए सुना कि ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है और एक ठोकर से खत्म नहीँ हो जाती।
पर अब तुम यहीँ रहो यही अब तुम्हारी दुनिया है दोस्त उसने कहा।मैं धीरे धीरे उन सबमें रमने भी लगा था कि एक दिन मुझे पूजा दिख गयी।
मैं उसके घर गया और यह देखकर बहुत दुःखी हुआ कि जिसके कारण मैंने इतने लोगों का दिल तोड़ा उसे मेरी याद तक नहीँ थी वह अपनी दुनिया में बेहद खुश थी।
मैंने उसे मारने का प्रयास किया और सफल भी हुआ पर वह मुझे नहीँ दिखी ।
मैं आज फिर रोया और अपने उसी दोस्त से पूछा कि पूजा मेरे साथ क्यों नहीँ आई?उसने बताया ,क्योंकि वह अतृप्त नहीँ थी,उसने अपना हर धर्म और फ़र्ज़ पूरा किया था।
अब मैं अवाक था और हताश भी,एक दिन अपने घर गया तो देखकर बहुत रोया मेरी बहन भी अपनी परिस्थितियों से हार मान कर कुछ ऐसा ही रास्ता अपनाने जा रही थी आज मैंने उसे बचाया और समझाया भी पर मेरी सीमा सपने तक की ही थी।आज उसी का आश्रय ले कर समझाया कि मिनी!ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत होती है और एक रास्ता बंद हो तो दूसरा आस पास जरूर होता है हमें अपने शुभचिंतक को सुनना और उस पर अमल भी करना चाहिये।
मिनी झटके से उठ गई और मुझे याद करके रोयी भी पर उसे मेरी बात समझ आ गयी थी।उसकी मदद करके मुझे भी सुकून था और अपने ऊपर पछतावा भी कि काश मैंने भी इस बात को कि समस्या का विकल्प चुना जाता है इसका हल आत्महत्या बिल्कुल नहीँ है।अगर मैंने ज़िन्दगी को चुना होता तो मैं आज रिश्तों की दौलत से महफूज़ होता यूँ अकेला न पड़तज़रा सा क्रोध और अवसाद मुझे अन्तहीन मार्ग पर ले गया था जिसकी मंज़िल नामालूम थी।ा।
समझा होता
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