मैं तो बहती धारा हूं....
कोई मुझे ना रोक सके ,
किस में इतना दम है,
जो मुझे यूं ही टोक सकें,
मै तो बहती धारा हूं.....
नित प्रति पल मे चलती हूं,
मैं एक पल भर ना रुकती हूं,
ना किसी के आगे झुकती हूं
जिसको चाहे मैं ले जाऊं ,
जिसको चाहे में तृप्ति कर दूं ,
मैं तो बहती धारा हूं ....
सब जनमानस को पवित्र करती हूं...
दूर दराज से मैं चलती ,
चट्टानों से बहती आई ,
समय का काम है चलते जाना....
और नदी का काम है बहते जाना ।
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