Manu jain
Manu jain 26 Jul, 2020 | 2 mins read
Song Fiction

Song Fiction

Kal Ho Na hoooooo.....

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Manisha Bhartia
Manisha Bhartia 23 Jul, 2020 | 1 min read
कर भला हो तो भला!!
Divya modh
Divya modh 21 Jul, 2020 | 1 min read

એકાંત

એકાંત સારું હોય છે અને ક્યારેક એકલા રહેવું પણ જોઈએ જેથી પોતાની જાત સાથે મુલાકાત કરી શકાય . પણ જો એકાંત જીવ લેવા સુધી આવી પડે તો તમારે બને તેમ જલ્દી બહાર નીકળવું.

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 18 Jul, 2020 | 0 mins read

मदद करना जरूरी

जरूरतमंद की मदद अवश्य करें।

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udit jain
udit jain 15 Jul, 2020 | 1 min read

अंधविश्वास कीचड़ जैसा दलदल

हमारे देश की यह बीमारी बहुत बड़ी है जो लोगो के अंधविश्वास को बढ़ावा देती है और उन्हे नरक के रास्ते मे धकेल देती है

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Neha Srivastava
Neha Srivastava 15 Jul, 2020 | 0 mins read

लफ्जो का फसाना

जिंदगी बस एक बार मिलती है उसे हंसकर, खुलकर शान से जिया जाये????

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Sumita Sharma
Sumita Sharma 15 Jul, 2020 | 1 min read

खिलौने जो ज़िंदा थे

वर्मा दम्पत्ति बेजान लैपटॉप के आगे घँटों से बैठे थे और कभी नेटवर्क का मामला तो कभी नींद का जोर पर आस थी कि शायद बच्चे ऑनलाइन आ जायें, पर सब व्यर्थ रहा। बरसों से रोज़ यही क्रम बना था,निशा को अक्सर मोहन यही समझाते कि हमारे खिलौने यही दोंनो हैं क्योंकि अपना बचपन तो कागज़ की नाव ,पतंग और कपड़े की गुड़ियों से ही निकल गया। अक्सर दोनों बाजार जाते तो त्योहारों पर  न जाने कितने खिलौने उठा लाते । इस आस में कि शायद  किसी रोज़ उन्हें खेलने वाले आयेंगे ,कभी आते तो उन्हें उन सबमें कोई दिलचस्पी भी न महसूस होती। धीरे धीरे व्यस्तता का अजगर वो पल भी निगल गया बची तो जीवन मे बस एक निस्तब्धता। अब तो त्यौहार भी बस उदासी में निकलने लगे  एक दिन मायूस पत्नी को समझाते हुए मोहन ने कहा ,"निशा क्यों न हम उन्ही खिलौने को बनाये जो हम बचपन मे खेलते थे। एक दो कागज़ की नाव और कपड़े की गुड़िया सुबह की सैर पर किसी कूड़े के ढेर में आजीविका खोज़ते बच्चों में बचपन की चिंगारी चमका देते। अब दोनों का ग़म कुछ छँटने लगा था,त्यौहार पर इस बार बच्चे आये तो दोनों वृद्ध खुश हुए । उन्हें वहीँ बसने के लिए पैसों का बंदोबस्त भी चाहिये था पिता से, उनकी मशीनी ज़िन्दगी और आधुनिक सोच ने ये भरम भी तोड़ दिया कि ,वो उनके बच्चे हैं। जैसे आये थे दोनों बेटे,वैसे ही एक हफ़्ते बाद चले भी गए । पर अब निशा और मोहन को उनके ऑनलाइन आने का इंतजार  न था। थके मन और परेशान दिमाग़ लिए दोनों ने सोना पसन्द किया,अगले दिन सारे खिलौने बटोर कर ले गए अनाथ आश्रम ।उनके इस कदम ने न जाने कितने जीवित खिलौनों में रौनक भर दी थी। बेजान खिलौनों (लैपटॉप और फ़ोन)पर निर्भरता अब कम हो चुकी थी।रोज दोनों वहीं आते और थक कर चैन की नींद सोते। एक दिन पुराना एलबम अलमारी में निकला तो निशा ने यह कहकर उसे ट्रंक में डाल दिया,"कि ये खिलौने कभी ज़िंदा थे ,चलिए अभी अनाथ आश्रम ही चलते हैं। अब खिलौने और खेलने वालों के किरदार बदल चुके थे।

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udit jain
udit jain 14 Jul, 2020 | 1 min read

स्पर्धा करें प्रतिस्पर्धा नही।।

जीवन मे खुद से स्पर्धा करेंगे तो कभी हार नही सकते।।

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