ठाकुर रतन सिंह स्वतंत्रता दिवस के ध्वजारोहण कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद अपने पूरे लाव लश्कर के साथ हवेली की ओर लौट रहे थे । रास्ते में रघु की चाय की दुकान देखकर उन्होंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने का इशारा किया ।इधर उनकी गाड़ी रुकी ,साथ ही उनके पीछे चल रही दर्जनों गाड़ियां भी रुक गई और उनके साथ के सभी लोग रघु के टी स्टॉल पर आकर बैठ गए।
एक तो रघु इतनी बढ़िया चाय बनाता है कि ठाकुर साहब जब भी इधर से गुजरते हैं तो उसके हाथ की चाय पिए बिना नहीं जाते और दूसरा अपने गांव में चल रही गतिविधियों के बारे में ठाकुर साहब को जानकारी मिल जाती है ।ठाकुर साहब को देखते ही रघु ने तुरंत दुकान से बाहर निकल कर उनके लिए चारपाई बिछाई और टेबल फैन को ठाकुर साहब की तरफ घुमा कर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
ठाकुर रतन सिंह गांव के सरपंच है। जब से वो सरपंच का चुनाव जीते हैं , गांव की तो काया ही पलट गई है। पक्की सड़क, सरकारी अस्पताल ,प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय ,डिग्री कॉलेज रोजगार,उन्नत कृषि किसी भी चीज की गांव में कोई कमी नहीं है।
खैर ठाकुर साहब ने रघु को बढ़िया अदरक वाली चाय बनाने का हुक्म दिया, रघु ने तुरंत स्टोव पर चाय चढ़ा दी और मुस्तैदी से अदरक कूटने लगा ।ठाकुर साहब , दुकान में पधारे इसलिए उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है।धन्य भाग्य कि ऐसे देवता समान आदमी के चरण आज इसकी दुकान पर पड़े ।
इधर चाय बन रही थी। उधर दुकान में काम करने वाला आकाश तुरंत कप प्लेट धोकर ले आया और उन्हें करीने से ट्रे में सजाने लगा। रघु ने तुरंत केतली में चाय छानी और आकाश कप और केतली लेकर ठाकुर साहब के करीब पहुंचा और उन्हें नमस्कार करके कप में चाय डालने लगा।
आकाश को देखकर ठाकुर साहब ने रघु से पूछा ,अरे रघु ,यह लड़का कौन है। रघु ने बताया, हुकुम, पास के गांव में मेरी विधवा मुहबोली बहन रहती है। यह उसका बेटा आकाश है, बिना बाप का बच्चा है सो मैं इसे अपने साथ ले आया ।दुकान पर काम करेगा तो कुछ कमा लेगा। बहन की भी मदद हो जाएगी ।ठाकुर साहब बोले, पर रघु यह तो अभी बहुत छोटा है। अभी उसके काम करने के नहीं पढ़ने के दिन है। मेरी सलाह मानो, आकाश को आकाश छूने दो ।इसे पढ़ाओ लिखाओ, तभी तो यह अपने नाम को सार्थक करेगा ।तुम इसके मामा हो, शायद ईश्वर ने इसे तुम्हारे पास उसका जीवन संवारने के लिए ही भेजा है। इसके नन्हें-नन्हें हाथ बर्तन धोने के लिए नहीं बल्कि कलम पकड़ने के लिए है। तुम इसकी तकदीर सवार सकते हो जो उसकी मुट्ठी में कैद है ।अगर तुम अपनी बहन की मदद करना ही चाहते हो, तो इसे गांव के प्राथमिक विद्यालय में भर्ती करा दो, और देखना वह दिन दूर नहीं जब आकाश आकाश को छू लेगा। रघु की समझ में ठाकुर साहब की बात आ गई। वह सोचने लगा ,यह बात पहले उसके दिमाग में क्यों नहीं आई ।कितना स्वार्थी है वह, जो फूल जैसे बच्चे से काम करवा रहा है ।अभी तो इन फूलों के खिलने के दिन है तभी तो समय आने पर यह अपनी सुगंध से दुनिया को महकायेंगे। रघु ने अपने आप से प्रण किया कि कल ही वह आकाश का दाखिला विद्यालय में करवा देगा ।
ठाकुर साहब भी चाय पी कर आकाश के सर पर प्यार से हाथ फेर कर हवेली की ओर चल दिए ।
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