"हर फिक्र को धुंए में उडाता चला गया ..."
रेडियों पर ये गाना बज रहा है ..और वो अभी भी बुझे मन के साथ उदास बैठी थी ..क्या इतना आसान है ,सारी चिंताओं को हवा कर देना ,वो भी धुंए में ..धुंआ जो अक्सर खुद परेशानी का सबब होता है..वो क्या किसी की मुश्किल आसान करेगा और अगर यहां सिगरेट की बात है कि उसको पीने से समस्याएं हट जायेंगी ,क्या सचमुच हट जाती होंगी ..?
अब कौन जाने ...अनुभव तो है ही नही और लेना भी नही क्योंकी वो सिरे से खारिज करती है कि उससे परेशानियां घटती है ,बढती नही ,लेकिन पल भर के डायवरजन के लिए ,जीवन में नयी फिक्रो को आमंत्रित कर लेना ,कहां की बुद्धिमत्ता है ..वैसे सारा खेल बुद्धि का ही तो है ,ना वो हर चीज को बारीकी से सोचे ,परखे , तो दुख ,अपमान ,पीडा सबकी इंटैनसिटी ही कम हो जाए ...ये महसूस करना ,संवेदनशील होना और फिर ये सोचना कि सामने वाला भी हमारे प्रति उतना ही संवेदनशील हो ,यही तो कारण है ...उदासियों के ,
अपेक्षा...होती ही क्यूं है ? कोई कल ही मिला और आज अपेक्षा कि वो हमसे प्यार से बात करें .."
क्यूं ..?
क्यूंकि हम उससे सही से बात कर रहे हैं ..। हां ,हम ...तो नियंत्रण ही अपने ऊपर है ,तो दूसरो से क्या ,अपेक्षाएं ..लेकिन फिर भी होती तो है ही ना ...।गाना कब का खत्म हो चुका था ...धुंआ तो कहीं नही था ,लेकिन उसको अपनी फिक्र उडानी तो थी ही ..उसने चूल्हे पर चाय चढायी और तुलसी की पत्ती लेने बालकनी में आयी ,देखा बहुत सारी चिडियां दाना चुग रही हैं ,जो उसने सुबह डाला था ..बहुत अच्छा लगा ..मन को एक अलग सा सूकून ...वो जल्दी से तुलसी की पत्ती लेकर अंदर गयी और फटाफट एक कप चाय बनाकर , बालकनी के एक कोने में बैठ गयी ,ताकि उसके आने से वो सारी चिडियां उड ना जाये ..चाय की एक एक चुस्की के साथ ,वो उन्हे देखती रही ,थोडा नजर घुमायी तो पास ही गमले में लगे मनी प्लांट पर नजर गयी ,जो हवा में हौले हौले झूम रहा था ..कितने दिन से उसने उसे छुआ ही नही था ..दिल किया ,एक बार उसके नन्हे नन्हे दिल के आकार के पत्तो को पुचकार दूं ..लेकिन नही उठी ,चिडिया ना चली जाएं ..लालच यही था ..पास रखे हरसिंगार पर एक कली लगी थी और एक गमले में यूं ही उग आयी ,घास मुस्कुरा रही थी ..हवा ठंडी थी ,लेकिन पुराने झडते पत्तो के साथ ..नयी नयी कोंपले देखना एक सुखद एहसास दे रहा था ..चाय खत्म हो चुकी थी और उदासी भी ...।अरे आज तो फिक्र ..सचमुच ही हवा हो गयी ..लेकिन धुंए में नही ,ताजी हवा में ..कुछ गहरी सांस ली ..मानो प्रकृति को अपने फेफडो में पहुंचाना चाहती थी ...दिमाग की नसे कितना हल्का महसूस कर रही थी ..।
बात ही क्या थी..,आज एक दोस्त ने बेरूखी से बात की थी आफिस में ,कोई बात नही ,वो खुद की किसी परेशानी में रहा होगा...अक्सर चिंताएं इतनी छोटी छोटी ही होतीं हैं...और हम उनमें कितनी आशंकाएं जोडकर बडा बना लेते हैं..।
क्यों घबराना ?.और क्यूं डरना.!
जिंदगी रोज रोज तो निष्ठुर नही होती ..।।
©® sonnu lamba 🌼
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
,🙏🏻🙏🏻,
Bahut sunder
थैंक्यू संदीप 🌺🌺
थैंक्यू विनीता जी
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