ग़ज़ल
मछुआरा पानी से डर कर बैठेगा, अँधियारा मुझ में घर कर बैठेगा? मैं हवा, ठहरा, तो क्या रुक गया, अपने घर तूफ़ां भी आकर बैठेगा। छोटी मोटी पतवारों को क्या छेड़ें, ये हाँथ जहाँ बैठेगा जम कर बैठेगा। कुर्सियाँ बिकती हैं खरीद सकते हो, मग़र जो बैठेगा इज़ाज़त लेकर बैठेगा। ग़ज़ल लिखी जाती है ऐसे माहौल में, तू पढ़ने बैठेगा तो संभलकर बैठेगा।
ग़ज़ल
तुम क्या जानो अँधेरे में साये कैसे दिखते हैं, वे लोग सरसैया जलाकर इबारत लिखते हैं। हाँ है दर्द मेरी हालत में बहुत, तुम भी रोओगे हम लोग तो पत्थरों पर अपना भाग लिखते हैं। हमारा हाल लिखके वक़्त ज़ाया न करो अमन' ये अमीर हैं साहेब ये धूप में कहाँ दिखते हैं। ©aman_g_mishra
स्वयं-सुधार
जूझ रहा हूँ, कुछ सूझ रहा हूँ, हर-पल एक पहेली बूझ रहा हूँ। अब हर पहेली का, हल निकाल डालूंगा, अब हार नही मानूंगा।। लड़ता रहा,झगड़ता रहा, खुद से,खुद को मिटाता रहा। अब हरेक गलती को,जड़ से मिटा डालूंगा, अब हार नही मानूंगा।। जमाने की सुनता रहा, खुद को ताने बुनता रहा। अब मैं खुद की सुनूंगा, और यही ठानूंगा, अब हार नही मानूंगा।। गलतियां पे गलतियां करता रहा, अपनी हार पर,खुद को हारता रहा। अब कुछ भी हो,मैं खुद को ही सुधारूँगा, अब हार नही मानूंगा।। अपने वजूद पर तरस आपने लगी थी , आईने के सामने शरम आने लगी थी। अपना वो चेहरा,अब खुद को नही दिखाऊंगा, अब हार नही मानूँगा।। पल -पल की कीमत पहचानूंगा, खुद की ज़ीनत ,अब बचाऊंगा। अब तक जो भी किया,सब भूल कर, एक नई जिंदगी मैं पाऊँगा।। अब हार नही मानूँगा। अब हार नही मानूँगा।। ©aman_g_mishra
मन
मन बहुत अधीर है, चंचल हुआ ये नीर है। मन में अमन नही, अमन में मन नही, कैसा ये संयोग है, या कहूँ वियोग है। मन से अमन का... मन को अमन चाहिए, अमन को मन चाहिए, ये कैसा बेजोड़ है, कैसा बेमिसाल है जो प्रेम है , जो नेम है, बिछड़ाव , मन से अमन का... मन मानता नही, अमन की सुनता नही, फिर भी, मन चाहता है अमन, पर अमन से दूर ही , खोया रहता है, जैसे इश्क़ हो गया हो, मन से अमन का... अमन के मन में , अमन नही, जैसे सागर के , तल में जल नही फिर भी अलग है, या एक हैं, अमन भी जानता नही, ये लगाव, मन से अमन का... ©aman_g_mishra
बच्चे बन जाएं
आओ कुछ पल बच्चे बन जाएँ, आओ कुछ पल सच्चे बन जाएं। न हो किसी से ईर्ष्या, न हो किसी से जलन, कुछ पल के लिए हम झगड़ें, फिर उसके ही दोस्त बन जाएं। आओ कुछ... दिल में हो एक ज़िद, पाने को पूरी दुनिया हो, खोने का न डर हो, अपनी चीजें हम खुद तोड़ें, और फिर खुद बनाएं। आओ कुछ पल... आँखों में हर पल , एक ख्वाब झलकता हो, मिल जाये तो खुश, नही तो हम रूठ जाएँ, कुछ पल के लिए हम रूठे, फिर हम खुश हो जाएं, आओ कुछ पल... छोटी छोटी खुशियाँ हो, छोटी-छोटी चीजें, इन छोटी चीजों में ही, हमारे सब सपने सच हो जाएं, इन छोटी छोटी खुशियां पा , हम भी खुश होने लग जाएँ। आओ कुछ पल... खेल खेल में हम, सारे काम कर जाएँ, इस तन में कुछ फुर्ती पाएं, सयानो को भी बच्चे बना पाए, हम भी अपना बचपना पाएं। हम भी अपना बचपना पाएं।। आओ कुछ पल.... अपने ख्वाबो में ही अपनी दुनिया हो, नित नए नए सपने सजाएँ, दिल में कितना भी दुःख हो, दो आंसुओ में हम सारा दर्द भूल जाएं। आओ कुछ पल बच्चे बन जाएं। आओ कुछ पल सच्चे बन जाएं।। ©aman_g_mishra