ग़ज़ल

मछुआरा पानी से डर कर बैठेगा, अँधियारा मुझ में घर कर बैठेगा? मैं हवा, ठहरा, तो क्या रुक गया, अपने घर तूफ़ां भी आकर बैठेगा। छोटी मोटी पतवारों को क्या छेड़ें, ये हाँथ जहाँ बैठेगा जम कर बैठेगा। कुर्सियाँ बिकती हैं खरीद सकते हो, मग़र जो बैठेगा इज़ाज़त लेकर बैठेगा। ग़ज़ल लिखी जाती है ऐसे माहौल में, तू पढ़ने बैठेगा तो संभलकर बैठेगा।

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 09 Aug, 2019 | 1 min read

मछुआरा पानी से डर कर बैठेगा,

अँधियारा मुझ में घर कर बैठेगा?


मैं हवा, ठहरा, तो क्या रुक गया,

अपने घर तूफ़ां भी आकर बैठेगा।


छोटी मोटी पतवारों को क्या छेड़ें,

ये हाँथ जहाँ बैठेगा जम कर बैठेगा।


कुर्सियाँ बिकती हैं खरीद सकते हो,

मग़र जो बैठेगा इज़ाज़त लेकर बैठेगा।


ग़ज़ल लिखी जाती है ऐसे माहौल में,

तू पढ़ने बैठेगा तो संभलकर बैठेगा।

-अमन मिश्रा



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Aman G Mishra

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