Tulika Das
tulikadas1
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भावों को बहने दो , पर खुद डूब ना जाओ ये ध्यान रखो । शब्द संभाल लेते हैं भावों को भी और हमें भी ।
उठाती हूं जब जब कलम , तुम्हें करीब पाती हूं
शब्दों से तुम्हें छू लेती हूं , जी लेती हूं तुम्हें थोड़ा
प्राण वायु - आक्सीजन
सबक खूब सिखाया प्रकृति ने हमें , देती रही वह मुफ्त ऑक्सीजन, कदर नहीं की हमने
हां , मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए।
हम भी तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए। कुछ तुम कहो , कुछ मैं कहूं , कुछ तुम सूनो कुछ मैं सुनु , थोड़ी शिकायतें तुम्हारी थोड़ी शिकायतें मेरी ।
#1000poems
गर इंसानों की बस्ती में इंसान ही पाए जाते
कभी रंगों से पूछा है तुमने कभी पानी से पूछा है तुमने है उस पर किसका नाम लिखा?
#Religious violence in India
वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ।
मोहब्बत की चादर लपेटे हुए इंतजार आंखों में समेटे हुए लम्हा वो जला नहीं जल कर वो बुझा नहीं
वो लम्हा
लम्हा वो जला नहीं ,जलकर वह बुझा नहीं मौसम करवटें बदल लेता है , लम्हा ये करवट भी बदलता नहीं
एक-दूसरे में हम शामिल भी तो है ।
यादों में तुम्हारा आना-जाना जारी भी तो है छूकर गुजरती है जो हवाएं हमें , सांसे उनमें हमारी शामिल भी तो है ।
##the poetry blast