होती बड़ी सुंदर धरती
धरा पर ही स्वर्ग हम पा लेते
जो धर्म और मजहब की दीवारें
हम ना खड़ी करते
गर इंसानों की बस्ती में
इंसान ही पाए जाते ।
यह जमीन है मेरी
यह मिट्टी है तेरी
यह घर है मेरा
ये आशियाना है तेरा ।
कहीं पत्थरों के परकोटे बाधे हमने
कहीं ईंटों के दीवार चुन दिए
चुन गयी इन दीवारों में मोहब्बत सारी
रह गयी बाहर दहलीज पर भावनाएं सारी ।
काश घर को घर ही रहने देते
इंसानों को घर बसाने देते
मोहब्बत को जिंदा रहने देते।
कभी रंगो पर लड़ते हैं
ये रंग तेरा , ये रंग मेरा
बटवारा रंगों का करते हैं
पर पूछा है कभी रंगों से
कि वह क्या चाहते हैं ?
रक्त तेरी शिराओं में बहे
या बहे वो मेरी रगों में
रंग रक्त का लाल होता है
हां वह भी किसी मां का लाल होता है
जो बात यह हम तुम समझ जाते
रंग इंद्रधनुष के हम बन जाते ।
कभी लड़ भिड़े हम किताबों पे
कभी चित्र और कलाओं पे
अर्थ में अनर्थ ढूंढते है
पर पूछा नहीं कभी स्याही या पन्ने से
वह आए हैं किस धर्म से ?
किन हाथों ने वह स्याही बनाई
किन हाथों ने वह पन्ने रंगे
गर जवाब इन सवालों के मिल जाते
मेहनत हाथों की हम समझ पाते
थोड़े इंसान हम बन जाते
इंसानियत के किताब के पन्ने हम भी कहलाते ।
पानी पर भी है नाम लिखा
कुआं मेरा , दरिया तेरा ,
बावरी मेरी ,ताल तेरा
कभी प्यास से पूछा है तुमने
उस पर किसका है नाम लिखा?
कभी पानी पर उंगलियां चला कर जो देखा होता
ना तेरा होता ,ना मेरा होता
पानी पर प्यास का नाम लिखा मिलता ।
हवाओं के भी दायरे बांध दो
सांसे उनमें हमारी घुल ना जाए
एक सासं से दूसरी सांस की
कहीं पहचान ना निकल जाए
होती बड़ी सुंदर उड़ान
जो हवाओं के संग बहना सीखे जाते
हम साथ रहना सीख जाते ।
यूं ही जिंदगी आसान होती नहीं
क्यों मुश्किल हम खड़ी करते हैं ,
क्यों बनके इंसान
हम इंसानों संग नहीं रह पाते हैं ।
ढूंढ ले ऐ इंसान !
इन सवालों के जवाब तू
ऐसा ना हो
तेरे वजूद पर बन जाए एक सवाल खुद तू ?
तुलिका दास
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