कुछ तुम कहो ,
कुछ मैं कहूं ,
कुछ तुम सुनो ,
कुछ मैं सुनूं ,
थोड़ी शिकायतें तुम्हारी ,
थोड़ी शिकायतें मेरी ,
सुलझाएं उलझनें हमारी ,
ऐसा कोना चाहिए ,
हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।
एक चाय की प्याली तुम्हारी ,
एक चाय की प्याली मेरी ,
उठती तलब नजदीकियों की ,
उठता धुंआ अहसासो का ,
अहसासो में भींग जाए मन
ऐसा कोना चाहिए ,
हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।
कुछ मेरे हाथों से छूटा ,
कुछ तुम्हारे हाथों से फिसला ,
कुछ यहां बिखरा ,
कुछ वहां बिखरा ,
समेट लूं जहां
वो पल सारे ,
ऐसा कोना चाहिए ,
हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।
कुछ करवटें बदलती रातें ,
कुछ रुठी हुई नींदें ,
थोड़ी मनाती हुई सुबह ,
थोड़ी थकी हुई दोपहरी ,
थोड़ी कतरा कर निकलती धूप ,
पिघलती शामों में पड़ती रहे सलवटें ,
ऐसा कोना चाहिए ,
हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।
हो जहां झीना सा पर्दा ,
कुछ दिखे , कुछ रहे धुंधला ,
कुछ दबी दबी सी हसरतें ,
कुछ जागते सपने ,
हो हाथों की नर्मी ,
बढ़ती रहे सांसों की गर्मी ,
ऐसा कोना चाहिए
हां ! मुझे तुम्हारे घर में एक कोना चाहिए ।
थोड़ा तुम तुम्हारे पास रहे ,
थोड़ा मैं मेरे साथ रहे ,।
बाकी मैं और तुम हम बन जाए
ऐसा कोना चाहिए ,
हां मुझे तुम्हारे घर में हमारा एक कोना चाहिए ।
#1000poem
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