वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ,
मोहब्बत की चादर लपेटे हुए ,
इंतजार आंखों में समेटे हुए ,
वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है,
वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ।
कई राहें गुजर गई उस मोड़ से ,
कई सपने टूट गए उस मोड़ पे,
पर लम्हा वो टूटा नहीं ,
टूट कर बिखरा नहीं ।
वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ,
वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ।
रात होती है चांदनी जलाती है,
सुबह होती है धूप जलाती है ,
पर लम्हा वो जला नहीं,
जलकर वो बुझा नहीं ।
वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है,
वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ।
बारिश में ये पिघलता नहीं,
आसुओं में ये घुलता नहीं ,
मौसम करवटें बदल लेता है,
लम्हा ये करवट भी बदलता नहीं।
वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है ,
वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ।
वोआज भी....
आज भी वो वहीं खड़ा है ,
मोहब्बत की चादर लपेटे हुए, ,
इंतजार आंखों में समेटे हुए ,
वही उस मोड़ पर तन्हा खड़ा है ,
वो लम्हा आज भी ठहरा हुआ है।
रचना - तुलिका दास।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.