Sushma Tiwari
26 Jun, 2020 | 1 min read
Shah طالب अहमद
21 Jun, 2020 | 0 mins read
रिश्तों की नोकझोंक।...
इल्ज़ाम के दौर में एहतराम किसे पसंद आता है। मज़ाक की हद रखें , कम अग़र सब्र का माद्दा है। गिरेबान में खुद के कहाँ किसी ने झांका है। गलतियों की फेहरिस्त में खुदको सबने कम आंका है। अपनी और अपनों की गलती में,होता अपना ही घाटा है। ऐसे हालातों में रिश्ता तो रहता है ,मगर भरोसा टूट जाता है।
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ARCHANA ANAND
14 Jun, 2020 | 0 mins read
आख़िर क्यों सुशांत?
अच्छा नहीं होता यूँ चुपचाप चले जाना बहुत मुश्किल है दिल को समझाना
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Sushma Tiwari
14 Jun, 2020 | 1 min read
बाल मजदूरी की दोहरी मानसिकता
बाल मजदूरी को लेकर दोहरी मानसिकता क्यों?
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