बाल मजदूरी की दोहरी मानसिकता

बाल मजदूरी को लेकर दोहरी मानसिकता क्यों?

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 14 Jun, 2020 | 1 min read
Child labor

प्लेट में सजे त्रिकोणाकार समोसे अपने अंदर कितना स्वाद भरे मूल्यांकन की प्रतीक्षा में थे। ठीक उसी तरह कजरी भी प्रतीक्षारत थी। दरवाजे की ओट में पर्दे से आधी छिपकर खड़ी उसकी नजर समोसों पर नहीं अपितु रागिनी दीदी की सहेलियों पर थी। कजरी अपनी माँ मालती की तरफ नज़र दौड़ाना ही नहीं चाहती थी, माँ तो ऐसे खड़ी है जैसे अभी उनकी बिटिया को मंच पर पुरस्कृत करने के लिए बुलाया जाएगा। वैसे भी रागिनी दीदी ने माँ को कभी नौकरानी होने का एहसास ही कहाँ होने दिया था।


" अरे वाह! पनीर समोसे! ये बहुत ही स्वादिष्ट है रागिनी! मालती तो सुपर शेफ बन गई है " रागिनी की सहेली ने खाते हुए कहा।

" अरे नहीं! इस बार कजरी ने बनाए है " रागिनी ने कहते हुए इशारे से कजरी को बुलाया।

उम्मीद से भरे कदम हौसलों से भरे ही थे कि समोसे का अगला निवाला कड़वा हो चला था

" रागिनी! तुमसे यह उम्मीद ना थी, सोशल वर्कर हो तुम और बाल मजदूरी? दोहरी मानसिकता!"

कजरी अब तो माँ की ओर देख भी नहीं सकती थी। माँ का हारा हुआ चेहरा उसे कभी नहीं देखना था।

" यह बाल मजदूरी नहीं है! कला है। कजरी आम बच्चों की तरह स्कूल भी जाती है और खेलने भी जाती है। शनिवार इतवार को हमारे बच्चे बेकिंग, पेंटिंग, गाना, बुनाई आदि सीखने जाते हैं तो वह हाॅबी क्लास! और कजरी सीखे तो बाल मजदूरी! इसे कहते हैं दोहरी मानसिकता। हर काम को सीखना अगर हमारे बच्चों के सुखमय भविष्य की गारंटी है तो मालती के बिटिया के लिए अलग मापदंड क्यों? वैसे तुम्हारी बिटिया भी 'क्यूट शेफ' के ऑडिशन की तैयारी कर रही है ना?" रागिनी की बातें सुनकर कजरी के कदमों में जान आ गई। सपने देखने के लिए हैसियत नहीं मायने रखती इसकी पुष्टि माँ के चेहरे की चमक कर रही थी जो किसी पुरस्कार से कम नहीं थी। 

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