बच्चे अपने माँ बाप की परछाई होते हैं वो जाने अनजाने उन्हीं का व्यवहार अपने जीवन मे उतारने का प्रयास भी करते है।इसलिए स्वयं के व्यवहार में भी बहुत धैर्य और सुलझाव की आवयश्कता होती है।
आज कल साधनों की उपलब्धता और स्वयं के भी अरमानों को जो हमारे पूरे न हो पाये उन्हें हम अपने बच्चों को देने का भरसक प्रयास करते रहते हैं।
कहाँ से कैसे कौन सी वस्तु उन्हें उपलब्ध कराई जा रही है इससे परिचित अवश्य करना ज़रूरी है।थोड़ा सा अभाव उन्हें इंतज़ार करना सिखाना भी चाहिये ताकि किसी वस्तु या अवसर में देर लगने पर बच्चे अवसाद में न जायें।
अपने बच्चों से घर बाहर के काम में सहयोग भी लेना आवश्यक है क्योंकि यह उनके; भविष्य निर्माण के लिये नींव का काम करता है जो माता पिता इसका ध्यान नहीं देते वो अपने बच्चों को पराश्रित ज़रूर बना देते हैं।
आजकल पापा की प्रिंसेज कल्चर बढ़ रहा है बच्चों को अच्छे पालन पोषण को उपलब्ध कराना बिल्कुल गलत नहीं पर अगर राजकुमारी को रानी लक्ष्मीबाई और राजकुमार को अभिनंदनजीकी तरह पाला जाय उदाहरण तो तब ही बनेंगे ना।राजकुमार ,राजकुमारी को भी अच्छा शासक बनाने के लिये घुड़सवारी, तीर तलवार चलाने और राजनीति की शिक्षा दी जाती थी आराम नही।
शेर, बाज़ यहाँ तक कि गौरैया भी अपने बच्चों को खुद के सर्वाइवल की ट्रेनिंग देते है।हम तो मनुष्य हैं फिर हम आराम की संस्कृति के पोषण की वकालत क्यों करें।
मोर सिर्फ ड्राइंग रूम में सजता है जबकि सेना का निशान बाज़ को ही चुना जाता है।अतः आत्मनिर्भर बनाना बेहद ज़रूरी है।
इसके साथ ही बच्चों को ज़रूरत व फ़िज़ूलखर्ची का अंतर भी समझाना आवश्यकता है।उनके निर्णय लेने की क्षमता को बढाने का प्रयास भी करना चाहिए।सही निर्णय के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए।
बचपन से ही बचत ,बैंकिग भी सिखानी चाहिये ।खुद की गलती मानने की ट्रेनिंग भी बेहद ज़रूरी होती है।क्योंकि अगर हम बच्चों को इस मानसिकता से पालेंगे की हम माता पिता हैं तो इसलिए हम ही सही हो सकते है ।तो बच्चे कभी बात नहीं सुनते।बच्चों के साथ दोस्ती के अतिरिक्त माता पिता होने की सीमारेखा भी बरकरार रखें।
उनकी असफलता के समय मे उन्हें अहसास दिलाएं की आप उनके साथ है।आपका सहयोगात्मक रवैया उनके लिये संजीवनी का कार्य करेगा।
परन्तु गलती करने पर उन्हें इस बात का अहसास भी दिलाएँ की पहले मुझ से ही सामना करना पड़ेगा ।बच्चों की गलती को छुपाना उन्हें जीवन भर के लिये विकलांग बनाना ही होगा।
सोशल मीडिया के उपयोग पर भी नज़र रक्खें कीप ए न आई कॉन्सेप्ट रखना ज्यादा सुखद है न कि हेलीकॉप्टर मॉम बनना।
समय के साथ चलने का प्रयास भी करें जब हम जेनेरेशन गैप को नही पचा पाते थे तो आज की पीढ़ी तो तेज़ रफ़्तार की है।
कुछ अपनी मनवाईये कुछ बच्चों की भी ज़रुर सुनें।ढेर सारे प्यार विश्वास व सहयोग के साथ उनके स्वागत योग्य निर्णय में सहायक भी बनें।
पर बच्चों के मोह में अपनी आर्थिक निर्भरता न खोएं।और बच्चों को भी जितना है उसमें बेस्ट चुनना सिखाएं।किसी के तुलना न करें हर बच्चा खुद में अनोखा है तो अपनी अपेक्षाएं न लादें।बल्कि बच्चे से भी बात करें कि वो क्या बेहतर कर सकता है।
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