रिश्तों की नोकझोंक।...

इल्ज़ाम के दौर में एहतराम किसे पसंद आता है। मज़ाक की हद रखें , कम अग़र सब्र का माद्दा है। गिरेबान में खुद के कहाँ किसी ने झांका है। गलतियों की फेहरिस्त में खुदको सबने कम आंका है। अपनी और अपनों की गलती में,होता अपना ही घाटा है। ऐसे हालातों में रिश्ता तो रहता है ,मगर भरोसा टूट जाता है।

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 21 Jun, 2020 | 0 mins read
Sourabh

इल्ज़ाम के दौर में एहतराम किसे पसंद आता है।

मज़ाक की हद रखें , कम अग़र सब्र का माद्दा है।


गिरेबान में खुद के कहाँ किसी ने झांका है।

गलतियों की फेहरिस्त में खुदको सबने कम आंका है।


अपनी और अपनों की गलती में,होता अपना ही घाटा है।

ऐसे हालातों में रिश्ता तो रहता है ,मगर भरोसा टूट जाता है।

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Shah طالب अहमद

talib

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • indu inshail · 4 years ago last edited 4 years ago

    True Talk

  • Shah طالب अहमद · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thank you so much dear

  • Ektakocharrelan · 4 years ago last edited 4 years ago

    बहुत खूब

  • Sharma · 4 years ago last edited 4 years ago

    Nice lines👌👌

  • Sonnu Lamba · 4 years ago last edited 4 years ago

    वाह

  • Shah طالب अहमद · 4 years ago last edited 4 years ago

    Thank you everyone

  • Vinita Tomar · 3 years ago last edited 3 years ago

    Nice

  • Shah طالب अहमद · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks aton

  • Ruchika Rai · 3 years ago last edited 3 years ago

    Awesome,गलतियों के फेहरिस्त में सबने खुद को कम आँका है

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