निर्वाणषट्कम् (आत्मषट्कम्)
निर्वाणषट्कम् (आत्मषट्कम्) आदिगुरु शंकराचार्य की विश्वास प्रसिद्ध कृति है। आदि गुरु शंकराचार्य के अपने गुरु बाल शंकर से सर्वप्रथम भेंट के अवसर पर उनके गुरु ने उनसे कहा की तुम्हारा परिचय क्या है, तुम कौन हो ? इस पर जो शंकराचार्य जी ने उत्तर दिया वही निर्वाण षट्कम के नाम से विख्यात है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित एक सुंदर कविता है।
किस्सा एक अनकहा अनसुना 3 (अनंत से अनंत में....)
...भ्रम! हाँ यही तो वो लगता है सबको। पर सच क्या है ये सिर्फ़ मुझे पता है। मुझे पता है कि उसका इस दुनिया में होना उतना ही सच है जितना ये सच है कि रोज़ सूरज रोज़ निकलता और डूबता है...पर उसका सूरज सदियों से अपने शिखर पर है, कभी डूबा ही नहीं।
किस्सा एक अनकहा अनसुना 2
आजकल सारी ल़डकियों को बैडबाॅयज़ ही अच्छे लगते हैं। पर क्या हो अगर किसी को दि अल्टीमेट बैडबाॅय मिल जाये तो?!
किस्सा एक अनकहा अनसुना 1
...भ्रम!हाँ यही तो वो लगता है सबको। पर सच क्या है ये सिर्फ़ मुझे पता है। मुझे पता है कि उसका इस दुनिया में होना उतना ही सच है जितना ये सच है कि रोज़ सूरज का निकलना और डूबना...पर उसका सूरज सदियों से अपने शिखर पर है, कभी डूबा ही नहीं।
किस्सा एक अनकहा अनसुना
..भ्रम!हाँ यही तो वो लगता है सबको। पर सच क्या है ये सिर्फ़ मुझे पता है। मुझे पता है कि उसका इस दुनिया में होना उतना ही सच है जितना ये सच है कि रोज़ सूरज का निकलना और डूबना...पर उसका सूरज सदियों से अपने शिखर पर है, कभी डूबा ही नहीं।
किस्सा एक अनकहा अनसुना (लूसिफ़र-एक प्रेम कहानी) (प्रस्तावना-1)
...भ्रम!हाँ यही तो वो लगता है सबको। पर सच क्या है ये सिर्फ़ मुझे पता है। मुझे पता है कि उसका इस दुनिया में होना उतना ही सच है जितना ये सच है कि रोज़ सूरज का निकलना और डूबना...पर उसका सूरज सदियों से अपने शिखर पर है, कभी डूबा ही नहीं।