ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ||
- ईशा उपनिषद से
अर्थात् यदि तुम अनंत से अनंत को घटाओगे तो अनंत ही शेष होगा।
जिस जगह कल्याणी की गाड़ी उस लड़के की गाड़ी से टकराई, वो जगह श्री अनंत विष्णु मंदिर के ठीक सामने थी। और उस समय वहाँ इसी श्लोक का सस्वर गायन हो रहा था, जोकि नज़दीकी होने के कारण साफ़-साफ़ सुनाई दे रहा था।
ये लड़का कोई और नहीं बल्कि लूसिफ़र ही था। शैतान! पर वो धरती पे क्यों था ये किसी को नहीं पता! धरती पे आने और रहने के पीछे के इप्सित के असल मक़सद को कोई नहीं जानता था। इप्सित, हाँ! यही था उसका असली नाम जो उसे अपने जन्मदाता से मिला था। इप्सित यानी की इच्छा, कामना। पर अब... अब उसे कोई इस नाम से नहीं बुलाता था।
कभी वो किसी की इच्छा था, किसी की कामना था। कभी वो किसी की प्रेरणा का स्त्रोत था। पर आज! आज बात और थी। आज कोई भी उसका नाम तक नहीं लेना चाहता। पर इससे उसे ना तो पहले फर्क़ पड़ा, ना आज। उसका सूरज तब भी बुलंदियों को छू रहा था जब वो सब की कामना था, और आज भी जब उसका कहीं कोई ज़िक्र तक नहीं होता। फर्क़ बस इतना है कि तब वो सब की प्रेरणा बन कर उनके दिलों में राज करता था, और आज एक खौफ़ बन के।
पर सवाल ये नहीं कि वो तब क्या था और आज क्या है? सवाल तो यह है कि नर्क का स्वामी धरती पर क्या कर रहा है?
इस धरती पर उसने ख़ुद को एक आवरण से ढक लिया है।
इंसानों की तरह ही जी रहा है। उसका अपना एक नाम है यहाँ, एक ब्रांड है वो यहाँ!
यही तो उसकी खास बात है। वो जहाँ जाता, बस राज करता है। चाहें वो नर्क में वहाँ का अधिपति बनकर हो, या फ़िर धरती पर बिजनेस का सिरमौर बनकर!
अंश कौल नाम के आवरण से ख़ुद को ढक कर एक एंटरप्रेन्योर, इन्वेस्टर,फ़िलैन्थ्रोपिस्ट और एजुकेशनलिस्ट के रूप में बड़े आराम से आम लोगों के बीच घुलमिल कर रह रहा है ।
पर इस धरती पर वो कौन सी फ़िलैन्थ्रोपी कर रहा है, ये सिर्फ़ वही जानता है!
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अंश जैसे ही पीछे मुड़ा और कल्याणी ने उसे देखा तो वो अंदर से एकदम दहल उठी। उसके अन्दर का डर उसके चेहरे पे साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था।
अंश उसे यूं देख मुस्कुरा उठा।
"तो आप उस दिन का बदला ऐसे निकाल रहीं हैं!" अंश ने कल्याणी से कहा।
कल्याणी के चेहरे की तो हवाइयाँ उड़ चुकी थीं। उसने माफ़ी में बरबस अपने हाथ जोड़ लिए। वो कोई बखेड़ा नहीं चाहती थी और अंश को जितना वो जानती थी उतना जानने-समझने के बाद उसे पूरा विश्वास था कि वो ज़रूर बात का बतंगड़ बनाएगा।
इधर अंदर गाड़ी में बैठी कल्याणी की ड्राइविंग टीचर उन दोनों को बड़े गौर से देख रहीं थीं और फिर अचानक उनके चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान तैर गई।
इधर अंश ने जब कल्याणी को अपने सामने हाथ जोड़े खड़े देखा तो जल्दी से आगे बढ़कर उसके दोनों हाथ पकड़ लिए। "ये आप क्या कर रहीं हैं?" उसने कहा।
"प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए। मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया।" कल्याणी डरते हुए बोली।
"मुझे पता है। आप जा सकतीं हैं। " अंश ने सधे स्वर में उत्तर दिया।
"क्या? देखिए आप नाराज मत होइए। मैं आपकी गाड़ी को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कर दूँगी। प्लीज इस मामले को आपस में ही निपटा लेते हैं।" कल्याणी ने विनती वाले स्वर में कहा।
"आप जा सकतीं हैं। मुझे कोई कम्पेन्सेशन नहीं चाहिए। आप जाइए!" इसबार अंश ने ज़ोर देकर कहा।
कल्याणी को अब भी भरोसा नहीं हो रहा था कि अंश उसे इतनी आसानी से जाने दे रहा है।
पर जब अंश ने ज़ोर देकर कहा तो समझ गयी की यहाँ बात बन रही। पर अगर ज़्यादा बोला तो बिगड़ते भी देर नहीं लगेगी। इसलिए वो चुपचाप बिना कुछ और कहे वापस लौट आयी।
कल्याणी चली गई पर अंश वहीं सड़क पर खड़ा, सामने खड़ी उसकी गाड़ी में बैठे शख्स पर बरबस ही नज़र चली गई। वो उन्हें ध्यान से देखने लगा।
कार में बैठी ड्राइविंग टीचर ने अंश को अपनी तरफ़ बहुत गौर से देखते पाया। उन्होंने अंश की आँखों में आए भावों को पढ़ लिया था। जब अंश से उनकी आँखें मिलीं तो उन्होंने धीरे से अपनी पलकें झपका दीं और उनके चेहरे पर फिर वही रहस्यमयी मुस्कान तैर गई।
उन्हें मुस्कराते देख इप्सित ने हाथ जोड़ उन्हें प्रणाम किया।जवाब में फिर उन्होंने अपनी पलकें झपका दीं।
कल्याणी सरसराते हुए, जल्दी से कार में आकर ऐसे बैठी मानो उसके पीछे कोई भूत पड़ा हो।
वो एक बार जब गाड़ी में आकर बैठ गयी तब कहीं जाकर उसे चैन की साँस आयी। टीचर को उसे ऐसा करते देख हँसी आ गई।
उसने उनकी तरफ़ देख जब हल्के गुस्से में पूछा कि वो क्या देख इतना हँस रहीं हैं, तो उन्होंने हँसते हुए ही कहा "तुम कितना डरती हो उससे! वो इतना भी ख़तरनाक नहीं।"
इसपर कल्याणी ने चिढ़ते हुए टीचर से कहा "अच्छा आपको कैसे पता है कि वो खतरनाक नहीं? "
इसपर टीचर ने जवाब में उल्टा उससे ही सवाल पूछ लिया "तुम बताओ की तुम्हें वो इतना ख़तरनाक क्यूँ लगता है? हाँ? "
इसपर उसने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा "ख़तरनाक? वो सिर्फ़ ख़तरनाक ही नहीं सिरफिरा भी है। आफ़त है, आफ़त बिल्कुल। "
इसपर टीचर ने उससे कहा "क्या तुम उसे इतना अच्छे से जानती हो? "
इस पर कल्याणी ने सामने देखते-देखते ही जवाब दिया "हाँ! ये बहुत बड़ा सिरफिरा है, कोई छोटा-मोटा वाला नहीं। हमारा रेस्टोरेंट है। वहाँ ये बारह बजे रात में खाना खाने पहुँच गया जब हम बंद करके बस जाने ही वाले थे। और जिद पे बैठ गया कि वो खाना खा के ही जायेगा। और अगर हमने उसे खाना नहीं खिलाया तो कंज्यूमर कोर्ट में मुक़दमा ठोक देगा हमारे ख़िलाफ़।"
"फिर? फिर तुमने क्या किया?"
"मेरा तो मन उसे पीट-पीट कर भगा देने का किया! पर मेरे बाबा! उनकी वजह से इस सिरफिरे को मैंने खाना भी खिलाया और इसकी चार बातें भी सुनीं।"
"इसकी चार क्या दो बातें भी सुनाने लायक नहीं होतीं! पर तुमने उसे खाना खिला कर अच्छा किया।" टीचर ने कहा और मुस्कुरा दीं।
कल्याणी का सारा ध्यान गाड़ी चलाने पर था सो उसे उनकी कही बातें साफ़ सुनाई नहीं दीं, उसने अपना सिर बस हाँ में हिला दिया।
जब कल्याणी गाड़ी लेकर ड्राइविंग स्कूल पहुँची तो उसने ध्यान दिया कि वापसी के दौरान गाड़ी चलाने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। जब इस बारे में बताने के लिए अपनी टीचर की तरफ़ मुड़ी तो उन्होंने उस से मुस्कराते हुए कहा "जब तुम कोई भी काम अपने अंदर के डर को निकाल कर करोगी तो ज़रूर ही अच्छा करोगी! डर के साथ सिर्फ़ मरा जा सकता है, जीने के लिए तो साहस चाहिए।"उन्होंने ऐसे ये बात कही जैसे उन्हें पहले से पता था कि कल्याणी उनसे क्या कहने वाली है। वो पहली बार कल्याणी से इस संजीदगी से बात कर रहीं थीं।
उस पल उसे ऐसा लगा मानो उसे उसकी गुरु मिल गईं। उसके मन में ना जाने कहाँ से उनके प्रति अथाह प्रेम और सम्मान का भाव उमड़ आया कि गाड़ी से उतरते ही वो उनके पास गयी और उनके पैर छू लिए। उन्होंने बड़े अपनेपन से उसे गले से लगा लिया।
वो पल कल्याणी के लिए बहुत ख़ास था।
अलग होते हुए उन्होंने कल्याणी से कहा कि "सभी का जीवन अनंत से निकलकर अनंत में ही एक दिन मिल जाना है। उससे पहले तुम अपने अस्तित्व की सार्थकता को सिद्ध कर देना। मेरा आशीर्वाद और मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।" उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा और चलीं गईं। वो उन्हें जाते बस देखती ही रह गई। उसकी आँखों में बरबस ही नामी उतर आयी। वो उन्हें जाने नहीं देना चाहती थी। उसे भी नहीं पता था क्यों?
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लोटस अपार्टमेंट (लूसिफ़र उर्फ अंश का घर):
अंश ने बेहद जल्दी में अपनी गाड़ी पार्किंग में लगायी और बहुत तेज़ी के साथ उनतीसवें माले पर स्थित अपने पेन्टहाउस के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगा। वो साथ-ही-साथ कुछ सोच भी रहा था। उसकी आँखों में गम्भीरता और चिंता, दोनों ही साफ़-साफ़ झलक रहीं थीं।
फ्लैट में घुसते ही वो अपने कमरे में जाता है और कुछ ढूँढने लगा।
अर्थ (इप्सित यानी कि लूसिफ़र का सगा भाई) लैपटॉप पर इस हफ़्ते के अकाउंट वर्क ऐनालाइज़ कर रहा था कि उसे अंश के कमरे से आवाज़ें सुनाईं दीं।
"लगता है भइया आ गए। चल अर्थ इस हफ्ते की गुड न्यूज ब्रीफिंग कर दे उन्हें, कि अपुन का कित्ता प्रॉफिट हुआ!" कह कर अर्थ अपनी जगह से उछल कर उठा और अंश के कमरे की तरफ़ चला गया। देखा तो दरवाजा खुला था।
वो दरवाज़े को पकड़ के झूलते हुए अंदर देख कर बोला"भइया! अपना प्रोडक्ट रिव्यू कम्प्लीट हो चुका है। बस आप....." उसने देखा तो अंश एक ताम्रपत्र की अति प्राचीन पांडुलिपि लिए बैठा था जिसपे ब्राह्मी लिपि से संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में कुछ लिखा हुआ था। उसकी आँखों में एक खालीपन था जिसे अर्थ भांप गया था। वो धीरे से अंश के पैरों पास आकर घुटनों के बल बैठ गया और उसकी तरफ़ ध्यान से देखने लगा। उसकी आँखों में चिंता थी अपने बड़े भाई के लिए।
सदियों से वो उसके लौटने का इंतज़ार कर रहा है। पर उसका इंतज़ार है कि पूरा होने का नाम ही नहीं लेता। वो किसी से कुछ नहीं कहता पर उसका अकेलापन किसी से भी छिप जाये, अर्थ से नहीं छिप सकता। पर वो अपने भाई की तकलीफ़ चाह के भी नहीं दूर कर पाता क्योंकि उसकी तकलीफ़ जो खत्म कर सकता है, वो आ ही नहीं रहा! कबसे ख़ुद अर्थ उसका इंतज़ार कर रहा है। पर सबसे बुरी स्थिति तो अंश की है!
अंश को जब अर्थ की मौजूदगी का एहसास हुआ तो उसने ताम्रपत्र समेट दिया और द्वंद्वात्मक स्वर में बोला "आज महामाया तारा के दर्शन हुए।" ये सुनते ही अर्थ ऐसे उछला जैसे उसे तेज़ बिजली का झटका लगा गया हो।
"क्या महामाया!"बड़ी मुश्किल से ये शब्द भी उसके मुँह से छूटे पाए। "इससे पहले उन्होंने हमें सांकेतिक चेतावनी देने के लिए तब दर्शन दिया था जब हम उसे खोने वाले थे!"अर्थ बड़ी मुश्किल से ये बोल पाया। अतीत की दर्दनाक यादों ने ऊपर से नीचे तक उसके शरीर में असहनीय पीड़ा की एक लहर दौड़ा दी।
"हाँ! लेकिन आज उनका यूँ हमारे सामने आना मात्र कोई संयोग नहीं हो सकता।"अंश बोला।
"तो इसका अर्थ ये है कि कुछ तो बहुत बड़ा घटित होने वाला है।" अर्थ बात की गहरायी को समझता हुआ बोला। "हाँ!"अंश बोला।
"पर क्या? " अर्थ ने पूछा।
"वही तो नहीं समझ आ रहा।" अंश परेशान होते हुए बोला।
"एक मिनट भाई! आप कहाँ उनसे मिले? उन्होंने आप से कुछ कहा भी? " अर्थ ने उत्सुकता एवं चिंता भरे स्वर में पूछा।
"नहीं! उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा। मैं बस उन्हें बस दूर से ही प्रणाम कर पाया। ऐसा लग रहा था जैसे वो मुझसे मिलना ही नहीं चाहतीं। " अंश परेशानी वाले भाव से बोला।
"एक मिनट भाई! आपने ये नहीं बताया वो आपको कहाँ मिलीं!" अर्थ ने फिर पूछा।
"अरे! श्री अनंत विष्णु मंदिर के सामने। उस कामचोर लड़की के साथ कार में बैठी थीं। " अंश कुछ नापसंदगी से बोला।
"किस कामचोर लड़की के साथ!"अर्थ ने उत्सुकता से पूछ लिया क्योंकि उसका बड़ा भाई बहुत अजीब किस्म का प्राणी था। वो हमेशा उसे किसी ना किसी अप्सरा के साथ मस्ती करते, खेलते दिखाई दे ही जाता था, इसीलिए उसे लगा वो भी ऐसी ही कोई लड़की होगी।
"अरे वो अन्नपूर्णा वाली! बारह बजे वाली!"वो लगभग बिफरते हुए बोला जैसे किसी ने उसे उसकी किसी बुरी हार की याद दिलायी हो।
"अच्छा! वो रेस्तरां वाली लड़की! वही जिसने आपसे जी भर के लड़ाई की। वही जिसका आपका ख़तरनाक संताप वाला मोहपाश भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया! वही जिसने उल्टा आपका मुँह कड़वा कर ....."
"बस! बहुत है। हाँ! वही पागल-सनकी लड़की !" अंश ने गुस्से और नापसंदगी से कहा।
पर अर्थ तो अर्थ है! वो कहाँ रुकने वाला था। उसने भी अंश को छेड़ने का मन पक्का कर लिया था।
अर्थ ने फुदकते हुए कहा "अरे भाई! वो आप जैसे जोड़ की तोड़ है। और हो सकता है महामाया जी को इस बात की भनक लग गई हो। इसीलिए हो सकता है उन्होंने उसके साथ मिलकर आपका घमंड तोड़ने का प्लान बनाया हो। "
अर्थ ने जब मसखरी के इरादे से ऐसा कहा तो अंश ने उसे बेहद तीखी, खा जाने वाली नज़रों से घूरा।
तो उसने घबराकर बात बदलते हुए कहा"अरे अरे भाई! ऐसा मैं नहीं महामाया जी कर रहीं हैं उस लड़की के साथ मिलकर !"
"ज़्यादा खयाली खिचड़ी मत पकाओ। समझे!" जब अंश ने डाँटा तो अर्थ ने मासूमियत से गर्दन हाँ में हिला दी।
पर ये बात सच ही तो है कि उसका सबसे ख़तरनाक मानसिक हथियार भी कल्याणी पर काम नहीं कर पाया।
'क्या वो किसी भी कामना से रहित है?'
फिर से ये सवाल अंश के मन में बिजली की तरह कौंधा। नहीं! नहीं! ऐसा हो ही नहीं सकता। एक इंसान और वो भी कामना से रहित! बिल्कुल भी नहीं! तो इप्सित उसके दिमाग को क्यों वश में नहीं कर पाया? ऐसा तो सिर्फ़ उसके साथ ही होता था। क्यूंकि वो सभी कामनाओं से रहित साक्षात मोक्ष था!
पर उसके अलावा ऐसा कोई नहीं कर पाया। यहाँ तक कि धर्म भी नहीं। धर्म की भी इच्छा होती है, आकांक्षा होती है कि सर्वत्र वो फैले,,,,पर मोक्ष की नहीं।
कल्याणी मोक्ष तो नहीं, ये बात वो जानता है। पर फिर वो है कौन? क्योंकि उसमें सिर्फ़ उसके गुण नहीं थे, उसमें किसी और के भी गुण थे, वो बिल्कुल उसकी परछाईं दिख रही थी। बिल्कुल उसके जैसा चेहरा,वही बात करने का अंदाज़, वही आँखें। वही मुँहफट तरीका। सब कुछ उसके जैसा ही था।
पर सम्मोहित ना हो पाने का सामर्थ्य बिल्कुल मोक्ष जैसा था!
ये सब याद करते हुए अंश को वो दिन याद आया जब वो कल्याणी के रेस्तरां में गया था और उसने खाना खिलाने से मना कर दिया था। तब दोनों में खूब मुँहज़ुबानी जंग हुई थी। झगड़ते-झगड़ते बात बात यहाँ तक पहुँच गई कि कल्याणी गुस्से से बोली "अमां यार! टोपा हो का बे! एक्को बार की कही बात समझ नहीं आती। नर नहीं निसाचर हो तुम क्या? इत्ती रात ना तो कोई खाना बनाता है, ना ही कोई खाता है। समझे! सीधे-सीधे निकल जाओ! वर्ना हम अपनी पे आ गए तो अपने पैरों पर नहीं एम्बुलेंस में जाओगे यहाँ से।"
"वर्बल असौल्ट (मौखिक हमला),लापरवाही, प्रोफेशनल मिसकंडक्ट(पेशेवर कदाचार), ग्राहक को धमकाना और भावनात्मक क्षति" अंश उंगलियों पर गिनता और पाँच उँगलियाँ दिखाता हुआ बोला "पाँच! पाँच अपराध अपने अभी-अभी किए हैं जिसके लिए मैं आपको जेल भिजवा सकता हूँ ।"
"तुम!तुम मुझे क्या जेल भिजवाओगे। मैं तुम्हें हॉस्पिटल ना भिजवा दूँ!" कल्याणी अंश को अंगुली दिखाते हुए बोली।
अब पानी अंश के सिर के ऊपर से बह रहा था। उसने फैसला लिया कि अब वो इस छोटी-सी बड़बोली , बदतमीज़ लड़की को सबक सिखाएगा।
"ज़बान संभाल के बात करो। तुम जानती नहीं कौन हूँ मैं! अगर मैं चाह दूँ तो यहीं, अभी के अभी, यहीं खड़े-खड़े तुम राख बन जाओगी। और वो राख पेड़-पौधों में खाद के काम आएगी!"
कल्याणी के सब्र का बाँध अब टूटने ही वाला था। किसी भी समय वो सामने खड़े नौजवान पर मुक्कों की बरसात कर सकती थी कि तभी उसने कुछ ऐसा कहा की उसकी आँखें बड़ी गईं और सिर घूम गया।
"सावधान! मैं लूसिफ़र हूँ! एक गलती और की तुमने और मैं तुम्हें यहीं राख में बदल दूँगा।"
एक और पागल खाने से भागा मरीज़! कल्याणी ने अविश्वास में अपना सिर झटका।
"क्या! क्या बोले अभी तुम? "
"यही कि मैं लूसिफ़र हूँ! हालांकि ये मेरा इंग्लिश वाला नाम है। तुम मुझे इप्सित बुला सकती हो। ये मेरा पहला और पसंदीदा नाम भी है। पर अब कोई मुझे इस नाम से बुलाता ही नहीं। सब वन्ना बी अंग्रेज़ बने पड़े हैं! पर मैं स्वदेशी में ही पूरी तरह विश्वास रखता हूँ और पालन भी करता हूँ।" अंश आराम से कल्याणी से बोला ।
"अगर तुम लूसिफ़र हो तो मैं भारत की राष्ट्रपति हूँ।नहीं प्रधानमंत्री! मैं मोदी हूँ ! ठीक? " कल्याणी ने गुस्से से कहा।
"मैं सच बोल रहा हूँ, बिल्कुल भी मज़ाक नहीं कर रहा!"
"मैं भी सच ही बोल रहीं हूँ। " कल्याणी ने तय किया कि सामने खड़े व्यक्ति पर वो मुक्का नहीं बरसायेगी बल्कि शब्दों से ही काम चलाएगी।
"हो ही नहीं सकता!"
"क्या नहीं हो सकता?"
"तुम लूसिफ़र हो ही नहीं सकते!"
" क्यूँ? "
"क्योंकि तुम में वो बात नहीं है।"
" कौन सी बात? "
"लूसिफ़र वाली!"
"क्या? "
अंश ने जब कल्याणी का जवाब सुना तो उसे समझ नहीं आया कि वो हँसे उसकी बात पर, या सिर पकड़ के रोये।
उसने तय किया की वो इन दोनों में से कुछ नहीं करेगा बल्कि इस छोटी बच्ची से पूछेगा कि आख़िर उसे ऐसा क्यूँ लगता है!
"और तुम्हें ऐसा क्यों लगता है? "अंश ने पूछा।
"क्योंकि तुम उसके आगे कहीं टिकते ही नहीं। कहाँ लूसिफ़र और कहाँ तुम!"
कल्याणी ने मुँह बनाते हुए जवाब दिया।
और इधर अंश को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई उसे ऐसे भी कह सकता है। मतलब इच्छा का साक्षात स्वरूप! प्रेरणा का साक्षात रूप! उससे सुन्दर सिर्फ़ विष्णु-महेश ही हों सकतें हैं और कोई नहीं! झूठी बात नहीं है ये। क्यूंकि उसे बनाया ही ऐसे और इसीलिए गया था। सबकी प्रेरणा का स्त्रोत। अत्यंत सुंदर और मनोरम।
आख़िर किसके लिए?
इन जीवों के लिए ही तो! और आज उन्हीं में से एक कह रही है कि उसमें वो बात नहीं!
हाँ वो बात और है कि अब वो काम रहा भी नहीं। अब वो लूसिफ़र है। पर रूप तो अभी भी काम का ही है। आकांक्षा का ही है। फिर ये लड़की ऐसे कैसे बोल सकती है।
उसने तय किया कि वो अब इस तुच्छ जीव को सबक सिखाने के बाद ही यहाँ से जाएगा।
वो बहुत प्रचंड और उग्र नजरों से उसकी आँखों में देखने लगा।
एक.. दो.. तीन.. चार.. करते-करते करीब दस मिनट निकल गए पर उसे कुछ नहीं हुआ। वो हिली तक नहीं।
"ओ हैलो! तुम मेरी आँखों में देखते-देखते ही सो गए क्या! कहां खो गए? होश में आओ। "
जब उसकी आवाज़ अंश के कानों में पहुँची तब उसका ध्यान टूटा। ऐसा कैसे हो सकता है? संताप मोहपाश खाली नहीं जा सकता! ये लड़की ढ़ेर क्यूँ नहीं हुई अभी तक! वो परेशान होते हुए खुद से बोला। अभी तक तो उसे अपना सिर पकड़े ज़मीन पर होना चाहिए था।
उसने तय किया कि वो एक बार फ़िर कोशिश करेगा । ऐसे हार नहीं मान सकता है वो।
.......
करीब और दस मिनट निकल गए फिर, पर हुआ कुछ नहीं ।
"अरे यार! देखो रात बहुत हो गई है। नींद आ रही है तो अपने घर जाकर सो जाओ। यहाँ नहीं। और मुझे भी जाने दो।
जब संताप मोहपाश का कोई असर कल्याणी पर नहीं होता नहीं दिखा, तो अंश ने फैसला लिया कि वो शब्दों से ही कम-से-कम कुछ कर दे। इसी इरादे से उसने कल्याणी से पूछा " तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है कि मैं लूसिफ़र के आगे नहीं टिकता ।"
"अरे यार! इसमें इतना सोचने वाली कहाँ कोई बात है! लूसिफ़र मार्निंगस्टार का शो तो नहीं देखा मैंने पर..."
"मैं उसकी बात कर भी नहीं रहा, मैं असली लूसिफ़र की बात कर रहा हूँ " लूसिफ़र मार्निंगस्टार का ज़िक्र सुनते ही अंश गुस्से से तिलमिला उठा।
"वो जो कुछ भी है पर लूसिफ़र तो नहीं है! वो सिर्फ़ एक काल्पनिक किरदार है जो बहुत ही ज़्यादा, मतलब बहुत ज़्यादा-ज़्यादा बेवक़ूफ़ाने तरीके से लिखा गया है। उसी की वजह से लोग मुझे चुटकुला समझ के मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। वो एकदम नकली है,,,,, बिल्कुल नकली! उसका मुझसे कोई लेना देना नहीं! वो एक सिर्फ़ कल्पना है, फैंटेसी! हकीकत तो मैं हूँ। " गुस्से से नाचते हुए अंश ने जवाब दिया।
कल्याणी उसे अविश्वास से बस घूरे ही जा रही थी। मतलब क्या था ये आदमी! उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर भी उसने अपनी सारी हिम्मत और धैर्य को जोड़ा और बोली " क्या बोल रहे हो ?पागल हो क्या? ऐसा कुछ असलियत में थोड़े ही होता है। ये सब तो बस किस्से-कहानियों में ही होते हैं। चाहें फिर वो लूसिफ़र मार्निंगस्टार हो या लूसिफ़र!"
" लूसिफ़र मार्निंगस्टार नहीं होता कुछ भी, सिर्फ़ लूसिफ़र होता है और वो मैं....."
"कल्याणी! क्या हो रहा है बेटा? किसकी आवाज़ है? कोई खाना खाने आया है क्या? "तभी अंदर से जगन्नाथजी ये कहते हुए और अपना चश्मा ठीक करते हुए बाहर आए।
*****
"भइया! भइया! कहां खो गए? किस सोच में डूबे हैं?" जब पास बैठे अर्थ ने अंश का हाथ पकड़ के ज़ोर से हिलाया तब कहीँ जाकर उसकी तन्द्रा टूटी और वो होश में आया।
"क्या सोच रहें हैं आप तबसे? हाँ? " अर्थ ने अंश को फ़िक्र वाली गहरी नज़रों से देखते हुए कहा।
"कुछ नहीं! बस मैं ये सोच रहा हूँ कि क्यूँ आखिर कल्याणी के ऊपर मेरा मोहपाश नहीं चला। " अंश ने घर की सीलिंग को देखते हुए ही खोए-खोए जवाब दिया।
"मैंने आपसे कहा ना इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है। आपने पूरा ध्यान नहीं लगाया होगा। बस इसीलिए उसके ऊपर आपके मोहपाश का कोई असर नहीं हुआ। इसमें इतना सोचने वाली कोई बात ही नहीं है!" अर्थ ने प्यार और फ़िक्र से अंश को समझाते हुए कहा। अंश ने अर्थ की बातों पर सहमति में अपना सिर हिला दिया।
बिल्कुल यही होगा। वर्ना उसका, इप्सित का मोहपाश खाली कैसे जा सकता है, तब तक नहीं, जब तक उसका प्रयोग स्वयं मोक्ष पर ना हो। क्योंकि मोक्ष ही बस एक है जो सभी कामनाओं से रहित है। सारे दुर्गुणों से रहित है। कल्याणी जैसे एक आम इंसान में इतनी शक्ति कहां...
उसने ऐसा ख़ुद से कहकर ख़ुद को समझाने का प्रयास किया। पर पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मान रहा था। कुछ तो था उस साधारण-सी दिखने वाली लड़की में जो असाधारण था!
तभी अर्थ के दिमाग में एक बात खटकी। उसने तुरंत ही अंश से कहा "एक मिनट भइया! आपने कहा कि महामाया के दर्शन आपको तब हुए जब वो कल्याणी के साथ थीं। है ना!" अर्थ ने अंश से पूछा।
"हाँ बिल्कुल!" अंश ने अर्थ को जवाब दिया।
"महामाया तारा का आपको युगों बाद दर्शन देना एक बात का तो साफ-साफ संकेत है कि ज़रूर आपके जीवन में कुछ बहुत बड़ा घटित होने वाला है। पर उनका आपको तब दर्शन देना जब वो कल्याणी के साथ थीं ये एक और बात का संकेत है!" अर्थ के हाथ एक बहुत गहरी बात का सिरा लगा था।
"वो क्या? " बेचैनी से अंश ने उससे पूछा।
"यही की जो कुछ भी आपके साथ होने वाला है वो किसी-न-किसी तरह से कल्याणी से भी जुड़ा हुआ है। वो भी बहुत गहरायी से ! क्यूंकि महामाया तारा द्वारा दिए गए संकेत कोई मामूली संकेत नहीं होते। उनमें हमेशा कुछ-न-कुछ गूढ़ और बहुत बड़ा ज़रूर छुपा होता है। " जब अर्थ ने ये बात अंश से कही तो उसे भी अब सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगा ।उसने अर्थ की बात पर सहमति में ज़ोर से सिर हिला दिया।
उसका आने वाला कल उसके लिए कौन-सी सौगात या कौन-सी मुसीबत लाने वाला है और ये सब कुछ किस तरह कल्याणी से जुड़ा है, उसे अब ये देखना था।
पर इसके लिए कल्याणी का उसके करीब रहना ज़रूरी था!
दोस्तों यहाँ मैंने पूर्णरूपेण स्वदेशी लूसिफ़र की अवधारणा पेश की है 😅😂😉। तो प्लीज पढ़ के बताइयेगा कि आपको कैसी लगी।
मैंने बड़ी मेहनत से लिखा है इसलिए मेरा उन सभी पाठकों से अनुरोध है जिन तक भी मेरी ये रचना पहुँच पाएगी क्योंकि मैं बहुत मामूली-सी लेखिका हूँ , तो कि प्लीज, प्लीज, प्लीज इसे पढ़कर अपनी अनमोल समीक्षायें ज़रूर दीजियेगा।
अगर आपको ये रचना अच्छी नहीं लगी तो भी और अगर अच्छी लगी तो भी, कृपया इस पर अपने विचार एवं सुझाव आवश्य व्यक्त करें। ये सुझाव मेरा ना सिर्फ मार्गदर्शन करेंगे बल्कि मेरा उत्साहवर्धन भी करेंगे लिखने के लिए।
तो मुझे आपके सुझावों एवं स्वदेशी लूसिफ़र से जुड़े आपके विचारों को जानने की उत्सुकता एवं इंतज़ार रहेगा।
आपकी अपनी लेखिका ❤🧡💚💙💜🤍💛
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
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