रात के डेढ़ बज चुके थे।
पर अभी भी अन्नपूर्णा भोजनालय खुला हुआ था क्योंकि उस नौजवान लड़के को यहीं खाना खाना था। बाबाजी को तो वो बहुत पसंद आया था। उसमें कुछ तो था जो उसे बहुत रहस्यमयी और आकर्षक बना रहा था।
खाना बन चुका था। बेचारी! कल्याणी ने इतना काम किया था कि इस सर्दी में भी कि वो बिल्कुल पसीने से तर-बतर हो गई थी। उसके माथे पर पसीने की बड़ी-बड़ी बूंदे आ गईं थीं।
पर एक बार जो उसने खाना बनाना शुरू किया तो बस तभी रुकी जब उसने सारा खाना उस लड़के की मेज पर लाकर रख दिया।
लड़का उसे ध्यान से ऊपर-नीचे देखने लगा। गहरी नीली रंग की स्वेटर और सफ़ेद रंग का पैंट पहने और उसके ऊपर से एप्रन पहने वो किसी भी प्रोफेशनल शेफ से कम नहीं लग रही थी। वो लड़का अभी ध्यान से कल्याणी को ही देख रहा है ये बात बाबाजी ने देख ली। उन्होंने ज़ोर से गला साफ़ किया। लड़के को तब ध्यान आया की खाना उसके सामने रखा है । उसने अपनी नज़रें कल्याणी से हटा लीं और खाने को देखने लगा।
दो-तीन मिनट जब वो खाने को ऐसे ही घूरता रहा तो कल्याणी चिढ़ कर बोली "अपने आप मुँह में नहीं आएगा। हाथ से उठा कर डालना होगा। " इसपर बाबाजी ने बात को संभालते हुए प्यार से उस लड़के से कहा "बेटा खाना खा लो नहीं तो ठंडा हो जाएगा। बहुत सर्दी है ना!"
जब बाबाजी की बात उस लड़के के कानों में पहुँची तो वो हल्का सा मुस्कुराया और उनकी तरफ़ देखकर सहमति में धीरे-से सिर हिला दिया और पहला कौर मुँह में डाला। और वो फिर धीरे-धीरे खाना खाने लगा।
खाना वाक़ई बहुत ही स्वादिष्ठ था। बस पालक पनीर बहुत ज़्यादा तीखा था।
"अपना सारा गुस्सा सब्जी में ही उड़ेल दिया है तुमने। " वो लड़का मन ही मन बोला।
पंद्रह मिनट में उस लड़के ने खाना खा लिया और जब पेमेंट कर जाने लगा तो बाबाजी ने बोला "आते रहना बेटा!" उनकी बात के जवाब में उसने हाँ में सिर हिला दिया और सम्मान से हल्का-सा झुककर उसने बाबाजी को नमस्ते किया और चला गया। बाहर उसकी गाड़ी खड़ी थी। उसने ड्राइविंग सीट का दरवाज़ा खोला, और बैठने से पहले, उसने भोजनालय की तरफ़ देखा और एक अलग ही अदा में मुस्कुरा दिया। फ़िर कार में बैठा और चला गया।
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कुछ दिनों बाद:
हम्म हम्म..
मोहब्बत में यूं हद को पार किया
मोहब्बत में यूं हद को पार किया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
दर्द की हदों को भी पार किया
दर्द की हदों को भी पार किया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
तू मेरी थी मेरी है
अगर खबर आ जाए
बेसबरे से दिल को
बेवक्त सबर आ जाए
खुशी देके तुमको गम उधार लिया
खुशी देके तुमको गम उधार लिया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो हो हो हो हो…
हो ये तड़प कैसी है
ये जलन है कैसी
हालाँकि दोनो में
है वफ़ा पहले सी
जो रंग तेरा है
वो रंग है मेरा
कुछ मैं तेरे जैसा
कुछ तू मेरे जैसी
जुदाई ने हमको इक सार किया
जुदाई ने हमको इक सार किया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
मोहब्बत में यूं हद को पार किया
मोहब्बत में यूं हद को पार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हम्म .. आ गले मिल फिर से
फिर जरा चैन आया
हो मेरे होठों पे
फिर तेरे ही साये
बिन तेरे जीना भी
मौत ही लगता है
या तू आ जाए
या सांस भी ना आए
दुआओं में ऐसा इज़हार किया
दुआओं में ऐसा इज़हार किया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
मोहब्बत में यूं हद को पार किया
मोहब्बत में यूं हद को पार किया
तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो तुमसे भी ज्यादा तुमसे प्यार किया
हो हो हो हो हो.....
"मैडम ये म्यूजिक बहुत लाउड वॉल्यूम पर है। प्लीज इसे अभी के लिए बंद कर दीजिए।" एक लड़की जो की ड्राइविंग सीट पर बैठी थी लगभग चिल्ला कर अपने बगल में बैठी महिला से कहती है जो इस गाने पर बेतहाशा झूमे जा रही थी। लेकिन वो महिला उसकी बातों पर ध्यान नहीं देती और पहले से ही बहुत तेज म्यूजिक का वॉल्यूम और तेज कर देती है।
एक तेज रफ़्तार कार सड़क पर अनियंत्रित होकर चली जा रही थी। और देखते-देखते वो गलत साइड में चली जाती है। इस से उस साइड में आ रही गाड़ियाँ जो उस कार से विपरीत दिशा में आ रहीं थीं यानी कि सामने से आ रहीं थीं उस कार से टकराते-टकराते जैसे-तैसे बचती हैं।
"ओ मेमसाहब! गाड़ी चलाना नहीं आता तो सड़क पर इतनी बड़ी गाड़ी लेकर कहें घूमती हो!" एक रिक्शावाला गुस्से में उस कार को चला रही लड़की से कहता है। क्योंकि अभी-अभी ये कार उसके रिक्शे को बस ठोकने ही वाली थी। वो तो रिक्शावाला जल्दी से रास्ते से हटा नहीं तो आज उसके रिक्शे के साथ-साथ उसकी हड्डियाँ भी टूटनी थीं।
वो लड़की चलती कार में से ही उस रिक्शे वाले के आगे हाथ जोड़ कर माफ़ करने का इशारा करती है। और फिर कार तेज़ी से आगे बढ़ जाती है।
ये कार वाली लड़की कोई और नहीं बल्कि हमारी कल्याणी ही थी। उसे स्कूटी चलाना तो आता था पर कार या पिक-अप नहीं, जिसके चलते बाबाजी और उसे कई बार नुकसान उठाना पड़ा।
बाज़ार से कोई सामान खरीद कर भोजनालय लाने के लिए उसे दूसरों की मदद लेनी पड़ती। और अगर समय पर ड्राइवर नहीं मिलता तो उस कारण तुरंत रसद एवं अन्य खाद्य-सामग्री भोजनालय नहीं पहुँच पाती थी। परिणामस्वरूप भोजनालय को कुछ समय के लिए बंद करना पड़ता और बहुत सारे लोग भूखे पेट, निराश होकर लौट जाते।
तो इन्हीं सब समस्याओं के निदान के लिए उसने कार और फिर पिक-अप चलाना सीखने का निर्णय लिया। और अपने कॉलेज से समय निकालकर ड्राइविंग सीखने के लिए उसने चार दिन पहले ही ड्राइविंग स्कूल ज्वाॅइन किया, ताकि वो अच्छे से गाड़ी चलाना सीख जाये। आज उसका पाँचवा दिन था ड्राइविंग क्लास में।
पर ये सिखाने वाली मैडम सिखातीं कम थी, ख़ुद बस मस्ती मारने, गाना सुनने गाड़ी में बैठतीं थीं।बस थोड़ा-सा बता देतीं और फिर कहतीं "अब चलाओ ख़ुद से!"
और आज तो हद ही हो गई। जितना नामभर का रोज़ बताती हैं, आज वो भी नहीं बताया। और तो और बोलीं टेस्ट लेंगी। ये सारे जो हादसे हो रहे थे न, ये सब उसी का नतीजा थे।
कल्याणी के सड़क के साथ रिश्ते कुछ ख़ास नहीं थे।
उसने अपने माता-पिता को सड़क हादसे में ही खोया था, इसलिए उसे सड़क में अपना दुश्मन दिखाई देता था। उसे इन रास्तों से चिढ़-सी थी।
वो जब भी सड़क पर स्कूटी चलाती थी, तब विशेष सावधानी बरतती थी क्यूंकि उसे बहुत डर लगता था। उसे लगता, कहीं उसकी भी अपने माता-पिता सी ही परिणीति न हो जाए.....
पर आज गाड़ी के रास्ते में अभी तक आयीं मुश्किलें तो कुछ भी नहीं थीं, असली मुश्किल तो अब आने वाली थी!
गाड़ी पहले से ही ग़लत लेन में थी की तभी सामने से एक गाड़ी, जो सामन्य से थोड़ी अधिक रफ़्तार में आ रही थी, कल्याणी की गाड़ी से बुरी तरह टकरा गई।
"लेलेलेलेले!" कल्याणी ज़ोर से चिल्लायी।
"हो गया सत्यानाश! जिस बात का डर था वही हुआ।" कल्याणी ज़ोरों से काँप रही थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी की गाड़ी से उतरकर जाये और कार वाले से माफ़ी माँगे।
वो कार वाला अपनी गाड़ी से उतरा और अपनी कार को ध्यान से देखने लगा। उसकी कार बहुत महँगी थी, जिसका कल्याणी ने टक्कर मार के हुलिया बिगाड़ दिया था।
कल्याणी की ड्राइविंग टीचर ने कहा "मुँह छुपा के मत बैठो! जाओ अपनी गलती का सामना करो।" उसके इतना कहने पर कल्याणी बोली "क्या गजब बात करती हैं आप! मेरी नहीं ये आपकी गलती है। " इसपर टीचर बोलीं "हाँ!हाँ! अब जाओ भी। "
कल्याणी डरते हुए अपनी कार से उतरकर उस व्यक्ति के पास गयी माफ़ी मांगने।
वो अपनी कार को अभी ध्यान से देख ही रहा था तब भी उसे पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी। वो पीछे पलटा।
कल्याणी उस व्यक्ति से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने ही वाली थी की वो व्यक्ति पलटा।
उसे देखकर कल्याणी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
ये.....ये तो वही लड़का था। उस दिन जो रात में बारह बजे भोजनालय खाना खाने आया था।
अब कल्याणी के सामने बड़ी नहीं बहुत बड़ी मुश्किल थी।
वो कैसे डील करती इस चंठ मानुस से, ये सोचकर ही उसे चक्कर आने लगा.....
स्वरचित एवं मौलिक
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