किस्सा एक अनकहा अनसुना 1

...भ्रम!हाँ यही तो वो लगता है सबको। पर सच क्या है ये सिर्फ़ मुझे पता है। मुझे पता है कि उसका इस दुनिया में होना उतना ही सच है जितना ये सच है कि रोज़ सूरज का निकलना और डूबना...पर उसका सूरज सदियों से अपने शिखर पर है, कभी डूबा ही नहीं।

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AM 19 Sep, 2022 | 1 min read

शैतान ने पता है इस दुनिया में सबसे ज़्यादा कौन-सा शैतानी भरा काम किया है?

उसने पूरी दुनिया को ये यक़ीन दिला दिया है कि वो है ही नहीं!कहीं भी नहीं...

पर मुझे पता है कि वो है!

और यही नहीं वो चुपचाप अपने मक़सद को अंजाम देने में लगा है!"



रात साढ़े नौ बजे से शुरू हुई घनघोर बारिश कहीं अब जाकर रुकी थी। पर अब भी बूंदा-बांदी हो रही थी।

आसपास की सभी दुकानें बंद हो चुकीं थीं पर अन्नपूर्णा भोजनालय(जगन्नाथजी का भोजनालय) अब भी खुला हुआ था।


  रात के साढ़े ग्यारह बजने वाले थे। टीवी पर "दूसरी दुनिया से आया एक अंजान" कार्यक्रम आ रहा था। कल्याणी को ये कार्यक्रम बहुत पसंद था। वो भोजनालय के सारे काम छोड़कर यही देखने में व्यस्त थी।


  तभी वहां किसी की दस्तक हुई...



        कल्याणी अभी-भी कार्यक्रम देखने में मगन थी सो उसे कुछ पता नहीं चला।

नव आगंतुक खिड़की के पास वाली टेबल पर जाकर बैठ गया और अपना ऑर्डर देने के लिए इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगा। जगन्नाथ जी तो अंदर कुछ देर कमर सीधी करने चले गए थे, क्यूंकि काम करते-करते वो थक गए थे । सिर्फ़ कल्याणी ही थी जो बाहर भोजनालय के डायनिंग एरिया में बैठी थी। तो ज़ाहिर सी बात है नव आगंतुक की नज़रों में सिर्फ़ वही आयी।

उसने उसे कई बार आवाज़ें लगायी पर कल्याणी को कुछ पता नहीं चला। दस मिनट ऐसे ही आवाज़ें लगाते-लगाते जब वो थक गया, तो वो उस तरफ़ ही उठकर चला गया जहाँ वो बैठी थी। और जाकर ज़ोर से उसके सामने पड़ी टेबल पर हाथ दे मारा। अचानक से अपने सामने ऐसा होते देखकर कल्याणी बुरी तरह डर गई, क्यूंकि उसका सारा ध्यान टीवी पर था। वो सकपका कर उछल गई और गिरते-गिरते बची।


      "मैडम वेट्रेस! अगर आपने भरपूर नयन सुख उठा लिया हो तो अपने रेस्त्रां में आए कस्टमर्स की तरफ़ भी ध्यान दे दीजिये। वो बेचारे, भूख के मारे! आपके द्वार पर खाना खाने आए  होते हैं, आपका इन्तेज़ार करने नहीं। " उस व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक लहज़े में कल्याणी से कहा।

          पर जब कल्याणी ने उसके चेहरे की तरफ़ देखा तो बस देखती ही रह गयी।


  वो था ही इतने कमाल का! तीखे नैन-नक्श, गहरी आँखें, 6'0 फुट लंबी कद-काठी, शरीर जैसे खास सांचे से ढ़ल कर निकला हुआ हो! उसके दिलकश चेहरे के बारे में भी यही कह सकते थे। ऐसा लग रहा था भगवान ने उसे बड़ी ही फुर्सत से बनाया था।


            कल्याणी जब उसके चेहरे में ही खोयी रही, उसे कोई जवाब  नहीं दिया तो उसने उसके आँखों के सामने अपना हाथ हिलाया और झुंझला कर कहा "ओ मैडम वेट्रेस! ऑर्डर भी लोगी या यहीं खड़े-खड़े सोती रहोगी? "

कल्याणी की तन्द्रा टूटी और वो वर्तमान समय में वापस आयी। वो इतना सुंदर था कि कल्याणी, जो अपने सम्मान को लेकर अति सचेत रहती थी, उसे देखने में इतना व्यस्त थी, की उसे ध्यान ही नहीं आया कि...कि कब से ये व्यक्ति जो उसके सामने खड़ा उसे वेट्रेस कह कर पुकार रहा था।



नहीं... नहीं... वेट्रेस की तौर पर काम करने में कोई बुराई नहीं लेकिन जिस अंदाज में वो व्यक्ति उसे बार-बार वेट्रेस कह कर बुला रहा था, वो अंदाज़ कल्याणी को चुभ गया।

वो चिढ़ गई और चिढ़ते हुए बोली "रेस्तरां बढ़ाने (व्यापरियों की भाषा में बंद )होने का टाइम हो चुका है, माफ़ करिए इस बार तो सम्भव नहीं, पर हम अगली बार ज़रूर आपकी सेवा  करेंगें।" वो जितना खुद को संयत कर के मीठे स्वर में बोल सकती थी, उतना कर के बोली।



लेकिन वो नौजवान भी कुछ कम नहीं था। उसने रेस्तरां के नोटिस बोर्ड की तरफ़ उसका ध्यान आकृष्ट कर के कहा " लेकिन वहाँ पर तो लिखा है रेस्तरां बंद होने का समय 11:50 पीएम है।"

कल्याणी बोली "हाँ! मैं वही तो कह रही हूँ।रेस्तरां बढ़ाने का  समय हो गया है।"

इस पर नौजवान ने अपने लुइस विट्टन के महंगे कोट के हाथ को बड़ी अदा से ऊपर किया और अपनी सतासी लाख की Czapek Place Vendom 1399 घड़ी में समय देखने लगा। ये देखकर कल्याणी बुरी तरह चिढ़ गई। उसे ऐसा लगा जैसे ये नौजवान इस साधारण-सी जगह पर बस अपनी अमीरी दिखाने आया है। हालांकि वो ऐसा कुछ भी जानबूझकर नहीं कर रहा था। ये बस उसकी आदत में शुमार था, और कुछ नहीं।


"हूँ...अभी तो सिर्फ़ 11:49 ही हुए हैं। पूरा एक मिनट बाकी है। और मैं यहाँ तो बीस मिनट पहले ही आया था!" उसने कहा और कल्याणी की तरफ़ तिरछे-से देखकर बोला, "अभी तक मैं खा कर चला भी गया होता! पर किसी की मेहरबानी के चलते मैं अब भी यहाँ खड़ा अपना समय बर्बाद कर रहा हूँ।"

"वही तो मैं भी कह रही हूँ, आप क्यूँ अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। जाईये..." कल्याणी जाईये शब्द पर ज़ोर देकर बोलती है।

"नहीं! मैं बिना खाना खाए यहाँ से हिलूँगा भी नहीं। और आपने मुझे खाना नहीं खिलाया तो मैं कंज्यूमर कोर्ट(उपभोक्ता न्यायालय) में आपके विरुद्ध ना स़िर्फ मुक़दमा दर्ज कराऊंगा बल्कि केस भी जीतूँगा तब आपका दिमाग ठिकाने पे आयेगा।" वो नौजवान व्यक्ति भी जिद्द पर अड़ता हुआ बोला।

...बस फिर क्या था। दोनों में भयंकर बहस छिड़ गयी। और ये बहस तब जाकर रुकी जब बाबाजी ने दखल दिया। "कल्याणी! कितनी बार कहा है किसी को भी भूखा पेट लौटाना पाप होता है," और उस नौजवान की तरफ़ देखकर बड़े प्यार से बोले "बेटा! आप क्या खाएंगे? कल्याणी इनका ऑर्डर लिखो और जाओ अभी लेकर आओ। " कल्याणी कसमसा कर रह गई। क्या करती बेचारी! अब बाबाजी की बात थोड़े ही काट सकती थी।


उस लड़के की तरफ़ जब कल्याणी ने गुस्से से देखा तो पाया, वो उसे ही देखकर तिरछा मुस्कुराये जा रहा था। ये देखकर उसका पारा और हाई हो गया। तभी बाबाजी की आवाज़ दोबारा कानों में पड़ी "जल्दी करो कालू!" दरअसल जगन्नाथ बाबाजी कल्याणी को इसी नाम से बुलाते थे, तब नहीं जब प्यार से बुलाना होता बल्कि तब जब उसका ध्यान अपनी तरफ़ खींचना होता या कहें जब उसे चिढ़ाना होता तब!

हालाँकि दोनों का रिश्ता बहुत आत्मीय था इसलिए ऐसी नोंक-झोंक का दोनों में से कोई भी बुरा नहीं मानता था।

   


        जैसे ही ये नाम उसके कानों में गया वैसे ही उसने खुद से कहा"सत्यानाश! अब तो ये अमीरज़ादा और दाँत फाड़ेगा मुझपे।" और जैसे ही ये बात उसके दिमाग में बिजली जैसी कौंधी, वो हवा की रफ्तार से वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गई । दौड़कर किचन में पहुँची और वहीं से चिल्ला कर बोली "बाबाजी आप ऑर्डर लेकर मुझे दे दो, तब तक मैं ज़रूरी तैयारियां कर लेती हूँ। " बाबाजी ने सुना तो वो उस लड़के की तरफ़ मुड़ते हुए बोले "आज के बच्चे भी ना!" वही बूढ़ों वाला डायलॉग मारा! और बोलकर उसका ऑर्डर लिया, और ले जा कर कल्याणी को दे दिया।



            ऑर्डर देखकर कल्याणी ने सिर पकड़ लिया। "ढोकला, मूंग दाल की खिचड़ी, बूँदी रायता, बाजरे की रोटी, पालक पनीर, मिक्स वेज सब्ज़ी, अरहर दाल फ्राई और रबड़ी। बाप रे! पेट है इसका या खेत है! रात के बारह बजने वाले हैं। इतना सब ये अभी खाएगा तो पचायेगा कब? और अभी तो लगभग सारा सामान भी खत्म हो गया है।सब फिर से बनाना पड़ेगा। और ये सब कुछ बनाने में दो घंटे तो लगेंगे ही। और अगर अच्छा नहीं बना तो," उस लड़के की नकल उतारते हुए " 'मैं आपके ऊपर कंज्यूमर कोर्ट में मुक़दमा ठोक दूँगा।' ऐसा बोल के धमकायेगा वकील का नाती! देखो तो कैसे बदला निकाल रहा है, वो भी इतनी ठंडी की रात में। " ऐसा खुद से ही बोल-बोलकर और झुंझलाते हुए कल्याणी खाना बनाने लगी।

  

  

       वहीँ वो लड़का डायनिंग रूम में बाबाजी के साथ बैठा बातें कर रहा था और अपना परिचय दे रहा था, अपने बारे में बता रहा था। और बीच-बीच में,रह-रहकर किचन की तरफ़ देख बड़े ही रहस्यमयी ढंग से मुस्कुरा दे रहा था ।









अगला भाग जल्दी ही प्रकाशित होगा।

कृपया अपनी अनमोल समीक्षाएं मेरी रचना को दें 🙏।


 


   



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