तुम ज़िंदा हो तो सबूत रखो
तुम ज़िंदा हो, तो सबूत रखो, यहां कुछ मुर्दे टहलते रहते हैं। बातों में आग से खेलते हैं जो, धूप लगते ही पिघलते रहते हैं। इनकी बातों में मैं नही आता, ऐसे लोग तो, मिलते रहते हैं। तुम सच्चाई को हिम्मत से कहो, कुछ लोग ज़ुबान सिलते रहते हैं। तुम अपनी क़द्र करना सीखो, लोग फ़न को कुचलते रहते हैं। तुम चराग़ जलाये रखा करो, रास्ते में सांप निकलते रहते हैं। अपनी बातों में वज़न रखो अमन, यहां सब फालतू ही बोलते रहते हैं। aman g mishra
भारत विडम्बना
तुम दृढ नही ,तो कुछ नही, तुम आज हो,पर कल नही! अपने विचारों की सदृढता, खो गयी या थी नही !! सिंधु की लहरों में अब , सिंह सी गर्जना नही ! बात कह के जो अटल हो, क्या वो अब भारत नही!! बाण शैया पर था लेटा, शब्द सार्थकता सही! अपने ही वचनों पर अमर हो, क्या वो गंगा-सुत तुम नही!! दुनिया को सिखलाया इसी ने, ज्ञान-दीपक था यही ! क्षुद्र-पाखण्डी प्रभावित, क्या ये भारत था वही!! गंगा की लहरें भी न बदली, अब भी हिमालय खड़ा वहीं! तब क्यों कहता है ये भारत, अब स्वर्ण की चिड़िया नही!! क्या अब इस माटी में , वो वीर पैदा होते नही! कि भारत माँ की छाती में, अमृत सा अब पय नही!! फिर क्यों उसकी संतानों में , वो तेज दिखता ही नही! जो बता दे विश्व को, अब भी ये भारत है वही!! अब भी ये भारत है वही!! भारत माता की जय!! जय हिंद!! ©aman_g_mishra