

हिजाब वाली लड़की
कहानी का विस्तृत सारांश यह कहानी आयशा नाम की एक युवा मुस्लिम छात्रा के बारे में है जो मुंबई के एक आधुनिक कॉलेज में हिजाब पहनकर आती है, लेकिन उसे अपने पहनावे के कारण सहपाठियों के उपहास और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है। शुरुआत में आयशा इन टिप्पणियों को नज़रअंदाज़ करती है, लेकिन एक दिन कैंटीन में कुछ छात्रों द्वारा उसके हिजाब और उसकी बौद्धिक क्षमता को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी उसे बोलने पर मजबूर कर देती है। आयशा बड़े ही शांत और दृढ़ स्वर में उन छात्रों को चुनौती देती है। वह सवाल करती है कि क्या हिजाब पहनने से "न्यूरॉन्स" काम करना बंद कर देते हैं और क्या विज्ञान में ऐसा कोई प्रमाण है जो यह बताता हो कि कपड़ों का एक टुकड़ा सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है। वह स्पष्ट करती है कि हिजाब उसकी आस्था का प्रतीक है और इसे पहनकर वह सुरक्षित और सहज महसूस करती है। आयशा के सवाल केवल उसके व्यक्तिगत अनुभव तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि वे समाज के सामने व्यापक प्रश्न उठाते हैं। वह पूछती है कि यदि एक महिला अपने चुने हुए परिधान में सहज महसूस करती है तो दूसरों को इसमें क्या समस्या होनी चाहिए। वह आज़ादी के सही अर्थ पर प्रकाश डालती है, जो न केवल अपनी पसंद को व्यक्त करने की स्वतंत्रता है, बल्कि दूसरों की पसंद का सम्मान करने की भी। वह इस बात पर जोर देती है कि लोगों को उनके कपड़ों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके विचारों और गुणों के आधार पर आंका जाना चाहिए। आयशा के सवालों से कॉलेज के छात्र शर्मिंदा होते हैं और उसके प्रति उनका नज़रिया बदलता है। कुछ छात्र उससे माफ़ी भी माँगते हैं। आयशा का यह कार्य न केवल उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है बल्कि यह भी साबित करता है कि अज्ञानता और पूर्वाग्रह को समझ और सम्मान से ही हराया जा सकता है। कहानी इस बात पर ज़ोर देती है कि आयशा एक मेधावी छात्रा थी और हिजाब उसकी बौद्धिक क्षमता या पहचान के आड़े कभी नहीं आया।

सहेली
सच्ची मित्रता किशोर वय के निश्छल लगाव में अधिक प्रभावी लगती है।

मध्यम वर्ग
It's article about middle class in society