बात काफी पुरानी है,छात्रावास में हमारी पहली होली थी।कुछ शरारतें करने की हम कुछ सहेलियों को सूझी।होली से एक दिन पहले होलिका दहन के बाद खाना खा पीकर जब सारी लड़कियाँ सो गयीं तो हम तीन चार सहेलियाँ चुपके से उठीं और उठकर सोई हुई लड़कियों के चेहरे को रंगने की योजना बनाई और सबके चेहरे पर दाढ़ी मूछें या फिर कुछ चित्रकारी कर दी और किसी को हम पर शक न हो तो अपने भी चेहरे पर नक्काशी कर सो गयीं।
सुबह होली वाले दिन उठने पर पूरे छात्रावास में हँसी ठहाके का वातावरण था।
सब एक दूसरे को देख खूब हँस रही थीं।सबको लगता कि सिर्फ दूसरों के चेहरे पर ही ऐसा है पर जब सबके चेहरे रंगे हुए दिखे तो हँसी थमने का नाम नही ले रही थी।
सबने पता लगाना चाहा कि ये कारस्तानी किसकी है पर कोई पकड़ नही पाया।
वह होली हमारे चेहरे पर बरबस मुस्कान लेकर अब भी आती।
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