ग़ज़ल
जाते जाते वो अपनी तस्वीर दे गए, हँसती हुई मेरी आँखों में नीर दे गए। देखती रही अपने हाथों को चुपचाप, हाथों में वो जुदाई की लकीर दे गए। मन में एक कसक रहेगी ता-उम्र अब, जिंदगी भर कम ना हो ऐसी पीर दे गए। मोहब्बत का मेरी मजाक बना गये वो, बेवफाई का इल्जाम वो मेरे सिर दे गए। दोष किसको दूँ उनको या हालात को, जाते हुए मुझे ख़िताब ऐ फकीर दे गए। मेरी मोहब्बत ही इतनी गरीब निकली, कौड़ियों के भाव गैरों को ज़मीर दे गए। आगाह कर सके "सुलक्षणा" औरों को, इसीलिये वो कलम ऐ शमशीर दे गए। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ग़ज़ल
बैठा है अपने दिल में छुपाकर राज कोई। बंद लबों से दे रहा है मुझे आवाज कोई। अपनी आँखों से हाल ऐ दिल बयाँ करके, निभा रहा है मोहब्बत का रिवाज कोई। दिल गुनगुना बैठा तराना ऐ मोहब्बत, दे गया चुपके से मोहब्बत का साज कोई। दिल धड़काया नज़रों से नजरें मिला कर, ऐसे कर गया मोहब्बत का आगाज कोई। अजीब सी हालत हो गयी मोहब्बत में, ना जाने कैसे होगा इसका इलाज कोई। दिन रात ख्यालों में खोई रहती हूँ मैं, खुद से भी प्यारा लगने लगा आज कोई। जिस दिल पर लाखों पहरे बिठा रखे थे, आज उस दिल का बन गया सरताज कोई। बस एक ही दुआ है मुझे मिल जाए वो, नहीं चाहिएँ मुझे तख़्त ओ ताज कोई। उसकी मोहब्बत के साये में बीते जिंदगी, सच कहने में रखती नहीं हूँ लिहाज कोई।