कविता

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 25 Aug, 2019 | 1 min read

?नव विभोर-नव नित भौंर,

  नव चेतना-नव कल्पना,

नवनूतन - नवनित निर्मित

 नव स्वप्न-सी तू सुंदरा,।।


?नव प्रायः-नव नव बात ,

नव नित तुझमे-मेरी वर्तना,

नवनव-दिखूँ-नव नव लिखूँ,

नव संकल्प तुम संग-नव वर्धना,

?नव निर्माण-तुम संग- प्रिय स्वांग,

तुम सिर्फ कल्याण-मेरी नव चेतना,

नव नव वेग-नव सन्दर्भ भेद,

तुम नित नयी-मेरी परिकल्पना,


?हर दिन नव उत्कर्ष-नव संघर्ष,

फिर भी नव वेग-तू प्रबला,

नित रोज़ टूटी-नित रोज़ फूटी,

नव नित साहस-तुम नव सम्बला,


?नव नित जोश- फिर भी होश,

तुम सदा-सर्व नव वन्दना,

नित रज से उड़ी-वायु से भिड़ी,

फिर भी लिखी अनगिनत नव कथा।।

?है नव नित प्रणाम तुझको,

नव नित सम्मान तुझको,

तू नव स्वर्ण सी तू नित खरा,

क्या कहूँ-तुझ पर टिकी है ये धरा,।।



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Aman G Mishra

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