ग़ज़ल

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Aman G Mishra
Aman G Mishra 24 Aug, 2019 | 0 mins read

कहने को कलम उठा ली पर चला नहीं पा रही हूँ,

दिल के जज्बात किसी को भी बता नहीं पा रही हूँ।


किसी की मोहब्बत में घुट घुट जीना सीख गयी,

अब खुली हवा में साँस लेने जा नहीं पा रही हूँ।


ना चाहते हुए भी मेरे दिल में उसके ख्याल आते हैं,

दिल के हाथों मजबूर हूँ, उसे भुला नहीं पा रही हूँ।


बेवफाई उसने की और यहाँ इल्जाम मुझ पर लगा,

उसके दिए जख्मों पर मरहम लगा नहीं पा रही हूँ।


मोहब्बत में दिल तोड़ना उसकी फितरत रही होगी,

दिमाग मान गया पर दिल को समझा नहीं पा रही हूँ।


उसकी हर एक निशानी को जलाकर राख कर दिया,

पर अपने कमबख्त दिल को मैं बहला नहीं पा रही हूँ।


उसकी यादों के सहारे अटकी है डोर मेरी साँसों की,

बस इसी वजह से उसकी यादों को मिटा नहीं पा रही हूँ।



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Aman G Mishra

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