ग़ज़ल

Originally published in hi
Reactions 0
617
Aman G Mishra
Aman G Mishra 25 Aug, 2019 | 1 min read

है डूबा क़र्ज़ में उस पर तकाज़ा रोज़ होता है 

पर उसकी शानो शौकत का दिखावा रोज़ होता है 


ठिकाने के लिए आपस में झगड़ा हो रहा हरदम 

जहाँ में गो बशर का आना जाना रोज़ होता है 


लगी हो लाइन बच्चों की पड़े हों खाने के लाले 

मजूरी करके पर पीना पिलाना रोज़ होता है 


जो टू व्हीलर किसी ट्रक कार को साइड न दे पाए 

तो उस गुस्ताख़ इंसां का सफ़ाया रोज़ होता है 


रिज़ाइन कर के दो दिन बाद ही वापस उसे लेना 

सियासत में तो प्यारे ये तमाशा रोज़ होता है 


नज़रअंदाज़ ना करना कभी औलाद का बचपन 

सुबह से शाम तक खाना कमाना रोज़ होता है 


0 likes

Published By

Aman G Mishra

aman

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.