चाय सा रिश्ता
जैसे-जैसे उस चायवाले की चाय उबल रही थी, वैसे-वैसे मनोज के होठों से शब्द उबलते हुए आ रहे थे,"यार,अब नहीं रह सकता और इस रिश्ते में,सीमा अपने-आपको समझती क्या है?कोई तो काम ढंग से होता नहीं उससे,उस पर जब देखो तब लटका हुआ मुँह लिये घुमती है। आये दिन तो सर में दर्द हो जाता है उसके।" सौमेश बड़ी गौर से मनोज की बात सुनते हुए बोला,"मनोज, देखो उस चाय की छलनी को;कैसे वो चाय पत्ती को अपने में समेटे हुए एक सुवासित,स्वादिष्ट चाय हमें देती है,वैसे ही तुम भी अगर सीमा की कमियों को अपने समेट कर उसको प्यार से समझोगे तो तुम्हारी ज़िन्दगी भी अदरक की चाय सी महक उठेगी। तुम्हारी अभी 2 महीने पहले ही तो शादी हुई है;अपने रिश्ते के रंग को पक्का होने के लिये कुछ समय दो, जैसे हम चाय को समय देते हैं कड़क होने के लिये।"
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by vidhisharai