Vidhisha Rai

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चाय सा रिश्ता
जैसे-जैसे उस चायवाले की चाय उबल रही थी, वैसे-वैसे मनोज के होठों से शब्द उबलते हुए आ रहे थे,"यार,अब नहीं रह सकता और इस रिश्ते में,सीमा अपने-आपको समझती क्या है?कोई तो काम ढंग से होता नहीं उससे,उस पर जब देखो तब लटका हुआ मुँह लिये घुमती है। आये दिन तो सर में दर्द हो जाता है उसके।" सौमेश बड़ी गौर से मनोज की बात सुनते हुए बोला,"मनोज, देखो उस चाय की छलनी को;कैसे वो चाय पत्ती को अपने में समेटे हुए एक सुवासित,स्वादिष्ट चाय हमें देती है,वैसे ही तुम भी अगर सीमा की कमियों को अपने समेट कर उसको प्यार से समझोगे तो तुम्हारी ज़िन्दगी भी अदरक की चाय सी महक उठेगी। तुम्हारी अभी 2 महीने पहले ही तो शादी हुई है;अपने रिश्ते के रंग को पक्का होने के लिये कुछ समय दो, जैसे हम चाय को समय देते हैं कड़क होने के लिये।"

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by vidhisharai

#story prompt 1 #microfable contest

06 Jan, 2024
अपना घर
शहर की उस नितांत तन्हा, वीरान चट्टान की तरह नीला भी बिल्कुल अकेली,शून्य-सी ऊँचाई में बैठी पूरे शहर को सजल नेत्रों से देख रही थी। शहर के लाखों घरों में टिमटिमाती रोशनी तारों की तरह, उससे आगे एक छोटी -सी झील में कई तरह की उभरती परछाई।हर व्यक्ति अपने घर में अपने परिवार के साथ सुकून से है ; पर उसके पास तो परिवार के नाम पर सिर्फ माँ थी ,वो भी चली गई उसको छोड़कर हमेशा के लिये।अपना घर के नाम पर एक किराये का कमरा था; और अब उसके पास कुछ नहीं।"कहाँ जाऊं मैं?" नीला ने खुद से प्रश्न किया और सहसा उसको वृद्धाश्रम"अपना घर" दिखा झील से आगे, जहाँ सेवाकर्मी की जरूरत है और अचानक उसकी आँखों में लाखों सितारे चमक उठे।

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by vidhisharai

#story prompt 3#microfable contest

20 Jan, 2024
जीवन चक्र
सुधांश की दिनचर्या का हिस्सा बन गया था अब,वृद्धाश्रम की खिड़की से सूर्योदय से सूर्यास्त तक सूरज के दिनचक्र को देखना और महसूस करना कि सुबह के समय पंछी अपनी चहचहाट से सूर्य का स्वागत करते हैं, दिनभर कितना कोलाहल,उत्साह और रोशनी होती है;पर जैसे ही सूर्यास्त का समय आता है एक अजीब सी उदासी पसर जाती है चहुँ ओर। सूरज खामोशी से अपने दिनभर के साथियों से भारी मन से विदा लेता है।कुछ ऐसा ही उसका जीवनचक्र है। उम्र के शुरुआती दिनों में कितना कोलाहाल था,पूरा परिवार उसके जीवन आंगन को रोशन कर रहा था और अब जिंदगी के सूर्यास्त में तो न तो उसके शरीर में चलने-फिरने की ताकत बची है और न ही उसके बच्चों के पास उसके लिये समय है;ऊपर से जीवनसाथी का साथ भी नहीं रहा।सूर्यास्त देखते-देखते सुधांशु खुद से कहना लगा,"यही जीवन-चक्र है,सूरज की तरह जीवन की सांध्यवेला में सबको तन्हा और निस्तेज होकर दुनिया से विदा लेनी होती है।"

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by vidhisharai

#story prompt 5#microfable contest

07 Feb, 2024