Vidhisha Rai
20 Jan, 2024
अपना घर
शहर की उस नितांत तन्हा, वीरान चट्टान की तरह नीला भी बिल्कुल अकेली,शून्य-सी ऊँचाई में बैठी पूरे शहर को सजल नेत्रों से देख रही थी। शहर के लाखों घरों में टिमटिमाती रोशनी तारों की तरह, उससे आगे एक छोटी -सी झील में कई तरह की उभरती परछाई।हर व्यक्ति अपने घर में अपने परिवार के साथ सुकून से है ; पर उसके पास तो परिवार के नाम पर सिर्फ माँ थी ,वो भी चली गई उसको छोड़कर हमेशा के लिये।अपना घर के नाम पर एक किराये का कमरा था; और अब उसके पास कुछ नहीं।"कहाँ जाऊं मैं?" नीला ने खुद से प्रश्न किया और सहसा उसको वृद्धाश्रम"अपना घर" दिखा झील से आगे, जहाँ सेवाकर्मी की जरूरत है और अचानक उसकी आँखों में लाखों सितारे चमक उठे।
Paperwiff
by vidhisharai
20 Jan, 2024
#story prompt 3#microfable contest
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