Vidhisha Rai
Vidhisha Rai 07 Feb, 2024
जीवन चक्र
सुधांश की दिनचर्या का हिस्सा बन गया था अब,वृद्धाश्रम की खिड़की से सूर्योदय से सूर्यास्त तक सूरज के दिनचक्र को देखना और महसूस करना कि सुबह के समय पंछी अपनी चहचहाट से सूर्य का स्वागत करते हैं, दिनभर कितना कोलाहल,उत्साह और रोशनी होती है;पर जैसे ही सूर्यास्त का समय आता है एक अजीब सी उदासी पसर जाती है चहुँ ओर। सूरज खामोशी से अपने दिनभर के साथियों से भारी मन से विदा लेता है।कुछ ऐसा ही उसका जीवनचक्र है। उम्र के शुरुआती दिनों में कितना कोलाहाल था,पूरा परिवार उसके जीवन आंगन को रोशन कर रहा था और अब जिंदगी के सूर्यास्त में तो न तो उसके शरीर में चलने-फिरने की ताकत बची है और न ही उसके बच्चों के पास उसके लिये समय है;ऊपर से जीवनसाथी का साथ भी नहीं रहा।सूर्यास्त देखते-देखते सुधांशु खुद से कहना लगा,"यही जीवन-चक्र है,सूरज की तरह जीवन की सांध्यवेला में सबको तन्हा और निस्तेज होकर दुनिया से विदा लेनी होती है।"

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by vidhisharai

07 Feb, 2024

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