Kiran
Kiran 21 Aug, 2019 | 1 min read
 ਬਾਲ ਮਜ਼ਦੂਰੀ

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Hari
Hari 21 Aug, 2019 | 1 min read
ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬਚਤ

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Hari
Hari 21 Aug, 2019 | 1 min read
Balanced diet

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Raghav Sen 21 Aug, 2019 | 2 mins read
Bal Swachhta Abhiyan

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Hari
Hari 20 Aug, 2019 | 1 min read
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Kiran
Kiran 20 Aug, 2019 | 2 mins read
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Kiran
Kiran 20 Aug, 2019 | 2 mins read
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Aman G Mishra
Aman G Mishra 19 Aug, 2019 | 1 min read

साक्षात्कार

दरअसल कुपात्र तार्किक लोगों ने एक नैरेटिव बनाया कि हमारे शास्त्रों में जन्म आधारित जाती सूचक शब्दों का वर्णन है। इसमें वह भी शामिल हैं जो तथाकथित धार्मिक हैं क्योंकि इससे उन्हें बिना कुछ किये धरे सम्मान व धन मिल जाता था, और वे भी जिनमें सनातन व्यवस्था की वास्तविक महानता से चिढ़ने वाले जैसे वामपंथी लोग भी, जो इसे खत्म कर देना चाहते हैं। गलती ये रही कि इस नैरेटिव पर चोट करने की बजाय सब अपनी जाति जन्मगत मानने लगे और शास्त्रों को भी इसी दृष्टि से पढ़ने लगे। जीवन भी वैसे ही जीने लगे। नाम के आगे श्रीवास्तव इत्यादि लगाकर स्वयं के साथ जाती को अभिन्न बना लिया। तुलसी, चैतन्य, शंकर, मनु जैसे सिद्धों के वाक्यों को उस मूल भावना में देखना होगा जहां जाति गुणकर्मविभागशः है। इस चौपाई के परिप्रेक्ष्य में श्रीराम द्वारा उल्लिखित नवधा भक्ति की ओर भी देखना होगा जहां श्रीभगवान ने भीलनी भक्त शबरी माता को यह बताने के बाद कहा कि इस भक्ति के नौ अंगों में से किसी एक का भी यदि कोई पालन करता है तो वह स्त्री पुरुष चर अचर कोई भी हो, मुझे अतिशय प्रिय होता है। इस प्रकार गोस्वामी जी ने श्रीभगवान के मुखकमल से यह कहलाकर सारी संकीर्णता और संशय की दीवार ध्वस्त कर दी।

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Kiran
Kiran 18 Aug, 2019 | 1 min read
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Hari
Hari 16 Aug, 2019 | 1 min read
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