fazal Esaf
fazal Esaf 02 Jun, 2025 | 1 min read
गांव और इंसाफ़

गांव और इंसाफ़

यह कहानी पंडित रामलाल और उनकी पत्नी सीता देवी की है, जो एक ऐसे गाँव में रहते हैं जहाँ हिंदू और मुस्लिम समुदाय सदियों से शांति और सौहार्द से रह रहे थे। एक दिन, देश के किसी दूसरे हिस्से में हुए एक आतंकवादी हमले के बाद, गाँव का माहौल बिगड़ जाता है। कुछ कट्टरपंथी ग्रामीण गुस्से में आकर गाँव के मुस्लिम परिवारों को धमकाने लगते हैं और उन्हें अपने घर खाली करने का आदेश देते हैं, उन पर आतंकवादी होने का आरोप लगाते हैं। गाँव के मुस्लिम परिवारों में से एक, सलमा बेगम और उनके परिवार को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है। जब भीड़ उन्हें उनके घर से निकालने की कोशिश करती है, तो पंडित रामलाल और सीता देवी उनके बचाव में आगे आते हैं। पंडित रामलाल भीड़ से सवाल करते हैं कि क्या किसी एक व्यक्ति के गलत काम के लिए पूरे समुदाय को दोषी ठहराना सही है। वह तर्क देते हैं कि अगर ऐसा होता है, तो हिंदुओं द्वारा किए गए बुरे कामों के लिए पूरे हिंदू समुदाय को भी दोषी ठहराया जाना चाहिए। उनकी पत्नी, सीता देवी, भी अपनी बात रखती हैं और सलमा बेगम के गाँव के प्रति योगदान और मदद को याद दिलाती हैं। वे दोनों स्पष्ट करते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता; आतंकवादी सिर्फ़ मानवता के दुश्मन होते हैं। वे गाँव वालों को समझाते हैं कि उन्हें आपस में नफ़रत फैलाने के बजाय ऐसे बुरे लोगों का मिलकर विरोध करना चाहिए। पंडित रामलाल और सीता देवी की बुद्धिमान और दृढ़ बातों का गाँव के लोगों पर गहरा असर होता है। उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है और भीड़ शांत हो जाती है। इस घटना से गाँव वालों को यह महत्वपूर्ण सबक मिलता है कि किसी एक व्यक्ति के कृत्य के लिए पूरे समुदाय को दोषी ठहराना अन्याय है और धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाना गलत है। यह कहानी सच्ची इंसानियत, समझदारी और मुश्किल समय में एक-दूसरे का साथ देने के महत्व को दर्शाती है।

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fazal Esaf
fazal Esaf 02 Jun, 2025 | 1 min read
बेघर: एक परिवार की अनकही पीड़ा

बेघर: एक परिवार की अनकही पीड़ा

यह कहानी शम्सुद्दीन साहब और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका पुश्तैनी घर, जो उनके जीवन का केंद्र था, को सरकारी बुलडोजर द्वारा बिना किसी चेतावनी के ढहा दिया जाता है। कहानी उनके दर्द, बेबसी और सदमे को बयां करती है। शम्सुद्दीन साहब और उनकी पत्नी, ज़ुबैदा खातून, अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ, अचानक बेघर हो जाते हैं। कहानी में उनके परिवार के सदस्यों की अलग-अलग प्रतिक्रियाओं को दिखाया गया है - बच्चों का डर और भ्रम, ज़ुबैदा खातून का दर्द, और शम्सुद्दीन साहब का भीतर का संघर्ष। कहानी में यह भी दर्शाया गया है कि कैसे यह घटना सिर्फ एक घर का नुकसान नहीं है, बल्कि उनके सपनों, सुरक्षा और पहचान का भी नुकसान है। यह कहानी उन अनगिनत मुस्लिम परिवारों की पीड़ा को उजागर करती है, जिन्हें अक्सर अन्याय और बेबसी का सामना करना पड़ता है, और उनकी उस भावना को व्यक्त करती है कि यह देश उनका भी उतना ही है, जितना किसी और का। कहानी में दर्द के साथ-साथ, फिर से खड़े होने और जीवन को फिर से शुरू करने की प्रेरणा भी है।

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fazal Esaf
fazal Esaf 28 May, 2025 | 1 min read
इमरान की टोपी

इमरान की टोपी

"इमरान की टोपी" कोई साधारण कहानी नहीं, बल्कि एक आवाज़ है — उस अज़ान की, जो अब चुप हो गई थी। उस इमरान की, जो पहचान से डर गया था। टोपी सिर्फ़ कपड़े का टुकड़ा नहीं — वह इतिहास है, परंपरा है, और आत्मसम्मान है। जब समाज किसी की टोपी को शक की निगाह से देखता है, तब वह केवल इमरान को नहीं, इंसानियत को अपमानित करता है। इस देश के नागरिकों से मेरा प्रश्न है: क्या इमरान की टोपी फिर से गर्व से पहनी जा सकती है? क्या हम अपनी सोच की दीवारें गिरा सकते हैं — ताकि टोपी, तिलक, पगड़ी, सब मिलकर एक देश की पहचान बन जाएं? हमारा देश तभी महान बन सकता है, जब हर इमरान अपने नाम को सिर उठाकर कह सके — और उसकी टोपी सवाल नहीं, शान बने।

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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 10 Apr, 2022 | 0 mins read
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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 08 Apr, 2022 | 0 mins read
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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 31 Mar, 2022 | 0 mins read
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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 24 Mar, 2022 | 0 mins read
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Dakshal Kumar Vyas
Dakshal Kumar Vyas 06 Mar, 2022 | 1 min read

लाचार

लाचार के साथ ही पुलिस नेता सरकारी कर्मचारी सभी उन्हीं का शोषण कर रहें है।

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Varsha Sharma
Varsha Sharma 31 May, 2021 | 1 min read

समाज को जागरूक करने की जिम्मेदारी

समाज के प्रति क्या सब का कर्तव्य है??

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