स्टेशन
रेलवे स्टेशन रेलवे स्टेशन एक ऐसी जगह जहाँ न सिर्फ रेल मिलती है, बल्कि बहुत से मुसाफ़िर अपनी मंजिल, कुछ लोग अपना जीवन,कुछ अपना जीवन साथी पा जाते हैं। हिंदी फिल्मों की तरह कितनी ही प्रेम कहानियाँ रेलवे स्टेशन से शुरू होती हैं। आज उसी रेलवे स्टेशन पर मैं टिकेट बुक कराने के लिए लाइन लगा हुआ हूँ। लाइन इतनी लंबी तो नही है कि खड़े खड़े मेरे घुटनो में दर्द होने लगे,पर इतनी कम भी नही कि फटाफट अपना नम्बर आ जाने में ख़ुशी न हो। एक लड़की मेरे बगल वाली लाइन में खड़ी अपने नम्बर के इन्तजार में है,मेरी तरह ही। पर हिंदुस्तान में बाहर के काम करवाने के लिए जैसे रेलवे टिकट बुक करवाना, गैस सिलेंडर रिफिल करवाना, आदि कामो में लड़कों को ही प्राथमिकता दी जाती है ,इस बजह से लड़कियों की लाइन छोटी है लड़को की अपेक्षा। अब उसका नम्बर भी आने वाला है, यूँ तो लड़की से बात करने का मन तो हो रहा है मेरा, मुझे पसंद भी है। पर बात करने की हिम्मत जुटाने तक में ही बहुत सी कहानियाँ ख़त्म हो जाया करती हैं।
बच्चे बन जाएं
आओ कुछ पल बच्चे बन जाएँ, आओ कुछ पल सच्चे बन जाएं। न हो किसी से ईर्ष्या, न हो किसी से जलन, कुछ पल के लिए हम झगड़ें, फिर उसके ही दोस्त बन जाएं। आओ कुछ... दिल में हो एक ज़िद, पाने को पूरी दुनिया हो, खोने का न डर हो, अपनी चीजें हम खुद तोड़ें, और फिर खुद बनाएं। आओ कुछ पल... आँखों में हर पल , एक ख्वाब झलकता हो, मिल जाये तो खुश, नही तो हम रूठ जाएँ, कुछ पल के लिए हम रूठे, फिर हम खुश हो जाएं, आओ कुछ पल... छोटी छोटी खुशियाँ हो, छोटी-छोटी चीजें, इन छोटी चीजों में ही, हमारे सब सपने सच हो जाएं, इन छोटी छोटी खुशियां पा , हम भी खुश होने लग जाएँ। आओ कुछ पल... खेल खेल में हम, सारे काम कर जाएँ, इस तन में कुछ फुर्ती पाएं, सयानो को भी बच्चे बना पाए, हम भी अपना बचपना पाएं। हम भी अपना बचपना पाएं।। आओ कुछ पल.... अपने ख्वाबो में ही अपनी दुनिया हो, नित नए नए सपने सजाएँ, दिल में कितना भी दुःख हो, दो आंसुओ में हम सारा दर्द भूल जाएं। आओ कुछ पल बच्चे बन जाएं। आओ कुछ पल सच्चे बन जाएं।। ©aman_g_mishra