पिताजी वैसे तो हर साल गेहूँ की खेती हम थोडी ज्यादा ही करते हैं ..घर में होने वाली खपत से ज्यादा जो गेहूं होता है उसे मंडी में बेच देते हैं लेकिन इस वर्ष एक विचार मेरे मन में आया है, हम घर में खाने के लिए गेहूँ अलग खेत में उगाते हैं और दूसरे खेत में गेंहूं की फसल उगायेंगें तो लेकिन जब वो छ: इंच लम्बे होंगें तभी उनको उखाड लिया जायेगा. ..पूरी फसल पाने तक नही रखेंगें..!
"लेकिन उससे क्या होगा बेटा.. "
पिताजी एक जापान की आयुर्वेदिक दवाई की कम्पनी है ,उन्होने मुझसे सम्पर्क किया है, वे यहां भारत में अपनी कम्पनी लगा रहे है, जिसमें अनेको दवाईंयां जडी बूटियों से बनेगी, उन्हीं में बनेगा, गेहूँ के ज्वारे का रस, जो इम्यूनिटी बढाने का काम आता है, वो अच्छी कीमत पर हमारे खेत किराये पर लेंगे, और यहीं गांव के मजदूर,लगाकर ही गेंहूं की फसल उगायेंगें अपनी आवश्यकता अनुसार..!
ये तो सही है बेटा लेकिन अपने देश में, अपनी जमीन देकर, दूसरे देश वालो को फायदा करवाना, ये तो कतई सही नही है, हमारा क्या फायदा..!
पिताजी ये भारत सरकार की" मेंक इन इंडिया पॉलिसी" है कि कोई भी देश नियमानुसार हमारे देश आकर, अपनी कम्पनी लगाकर, हमारे संसाधनो का प्रयोग करके, उत्पादन कर सकता है, हमारा फायदा ये है कि हमारे लोगो को रोजगार मिलेगा और हमारे संसाधनों का हमे उचित मूल्य, जिससे देश की अर्थ व्यवस्था मजबूत होती है.. !
"ये तो ठीक है बेटा, लेकिन क्या ये ज्वारे का रस बनाना इतना मुश्किल है,"
"नही पिताजी, इतना भी मुश्किल नही, मुलायम मुलायम गेंहूं के अंकुर पीसकर उनका रस ही निकालना है लेकिन व्यापार के लिए बनायेंगें तो मजदूर और कुछ मशीनो की जरूरत होगी और टेक्निकल चीजें भी पता होनी चाहिए, तब हो सकेगा. !"
तो बेटा किसी को खेत किराये पर ना देकर हम खुद ही बनायेंगें, ज्वारे का रस.. .!
खुद का एक ब्रांड नाम रख कर लोकल से धीरे धीरे शुरू करते हैं, तुम थोडी ट्रेनिंग ले लो, उत्पादन की, और जरूरी मशीने और सामान खरीद लो ..!
मैं इधर खेत तैयार करवाता हूं और गेहूँ के अच्छे बीज का इंतजाम करता हूं और दोनों मिलकर ज्वारे का रस अपने ही लेवल पर बनायेंगें..!
ठीक है पिताजी आप ने तो "मेड इन इंडिया " का पाठ मुझे पढा दिया, मैं तो आपको "मेंक इन इंडिया" के बारे में समझा रहा था, बस यही अंतर है पिताजी, "मेंक इन इंडिया" और "मेड इन इंडिया " दोनो ही प्रोग्राम से हमारी इकोनोमी बढती है...!
"और मेड इन इंडिया से हम आत्मनिर्भर भी तो बनते हैं बेटा..."
" हां पिताजी, सही कहते हो आप.. "
चलिए फिर हम अपने अपने काम पर लगते हैं. ..।।
©sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सोनू जी बहुत उम्दा कहानी है, आपकी। बहुत सरल तरीके से समझाई है आपने दोनों का फर्क। बहुत धन्यवाद, आपको!
बहुत बहुत धन्यवाद ममता जी, मेरी सरल बुद्धि में ऐसे ही आया इसका अंतर तो ऐसे ही बताने की कोशिश की है, हो सकता है, व्यापक विषय है, ये ,इसके ओर भी बहुत से पहलू होंगें,
बहुत बढ़िया लेख
बहुत बहुत धन्यवाद बबिता जी
संदेशपरक सृजन मैम। आपका हृदय से आभार 🙏🏻🙏🏻
बहुत सार्थक सन्देश
बहुत बहुत धन्यवाद संदीप आपका
बहुत बहुत धन्यवाद सुमेधा जी
Kahani accha hai, badhai
बहुत बहुत धन्यवाद अरविंद जी
बहुत बहुत सुन्दर लेख बधाई
बहुत बहुत धन्यवाद वर्षा जी
बहुत अच्छी तरह कहानी के माध्यम से आपने अंतर बताया👌🙏💐
Thanks @preeti Gupta
bahut badhiya.
थैंक्यू इन्दु जी
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