दिल
दिल
कभी दिल था मेरा मालामाल
समझ ना पाया समय की चाल
कभी ऊंचा रहता मेरा भाल
फंस गया मैं तो इक जाल
बन गया वो जी का जंजाल
उड़ गए मेरे सारे बाल
था मैं कभी गुरु घंटाल
आज हो गया मैं फटेहाल
समय को नहीं दे सकते टाल
जिंदगी हो गई गम से बेहाल
मन में रहा बस एक मलाल
आज बकरा हो रहा हलाल
कैसे सुनाऊं मैं दिल का हाल
लाखों गमों की जली मशाल
फिर भी ना मिली चैन की ढाल
खिंचती रहती मेरी खाल
पिचक गये मेरे पूरे गाल
मैं भी हूं किसी मां का लाल
पूछो मत मुझसे मेरा हाल
जीवन नैया है डूबी इक ताल
आ गया भैया मेरा काल
शरीर हो गया है कंकाल
नाड़ी की धीमी हो गई चाल
मुझे क्षमादान दो अभी हाल
जिससे मरण हो खुशहाल।
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना
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by rekhajain