rekha jain
09 Jul, 2022
दिल
दिल
कभी दिल था मेरा मालामाल
समझ ना पाया समय की चाल
कभी ऊंचा रहता मेरा भाल
फंस गया मैं तो इक जाल
बन गया वो जी का जंजाल
उड़ गए मेरे सारे बाल
था मैं कभी गुरु घंटाल
आज हो गया मैं फटेहाल
समय को नहीं दे सकते टाल
जिंदगी हो गई गम से बेहाल
मन में रहा बस एक मलाल
आज बकरा हो रहा हलाल
कैसे सुनाऊं मैं दिल का हाल
लाखों गमों की जली मशाल
फिर भी ना मिली चैन की ढाल
खिंचती रहती मेरी खाल
पिचक गये मेरे पूरे गाल
मैं भी हूं किसी मां का लाल
पूछो मत मुझसे मेरा हाल
जीवन नैया है डूबी इक ताल
आ गया भैया मेरा काल
शरीर हो गया है कंकाल
नाड़ी की धीमी हो गई चाल
मुझे क्षमादान दो अभी हाल
जिससे मरण हो खुशहाल।
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना
Paperwiff
by rekhajain
09 Jul, 2022
#microfable
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.