धरती माता
सदियों से ये धरती हमें पालती आई है
गोद में अपनी ये दुलारती भी आई है
पर हमने दिये इतने ज़ख्म वो कराह रही है
मरहम लगाने को वो पुकार रही है
चुका नहीं सकते कर्ज़ धरती का पर फर्ज़ अपना निभाना है
हर कीमत पर इसे प्रदूषण मुक्त कराना है
संरक्षण रूपी यज्ञ में हरेक को आहुति देनी है
संसाधनों के किफायती प्रयोग की शपथ सबको लेनी है
लोभवृत्ति और शक्तिशाली होने की होड़ से हमको बचना है
पॉलिथीन से करके तौबा, रीसाइक्लिंग की दिशा में बढ़ना है
बिछानी है चादर हरियाली की, ऑर्गेनिक फूड का सेवन करना और कराना है
हमें एक दिन नहीं हर दिन पृथ्वी दिवस मनाना है
आने वाली पीढ़ी को हमें अमूल्य सौगात देनी है
उन्हें हर हाल में स्वच्छ और सुंदर धरा सौंपनी है
मौलिक रचना
वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर
Paperwiff
by vandanabhatnagar