अनुच्छेद 370
धारा 370 370 के कुछ प्रावधान समाप्त कर दिए गए। बहुतों ने छाती पीटी, अल्पसंख्यक समुदाय की दुहाई दी गई, ऐतिहासिक दस्तावेजों की दुहाई दी गई। कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि इस पर लिखो। लिखना क्या है! यह देश कैसे चलेगा? इतिहास के कुछ पन्नों से, कुरान से, मनु स्मृति से या दास कैपिटल से? पहले यह निर्धारित कर लें। इस देश मे मेरिट और डीमेरिट का निर्धारण कब तक जाति और धर्म से होगा? एक संघ के अनेक घटकों को चलाने के लिए केवल एक नीति निर्देश तत्व होना चाहिए, समता। वह समता कश्मीर और अल्पसंख्यकों तक आकर क्यों लुप्त होने लगती है! संविधान की मूल भावना के विपरीत है, किसी को भी विशेष अधिकार देना। 370 उसी समानता की मूल भावना के खिलाफ है, भारत संघ के अंदर प्रत्येक राज्य एक ही नियम से संचालित होने चाहिए। समय है देश के अंदर से ऐसे भेदभाव वाले नियमों को ढूंढ ढूंढ कर खत्म करने के, न कि ऐतिहासिकता और अल्पसंख्यकों के अधिकार के नाम पर भेदभाव के सुरक्षा की। अंत में, इसका श्रेय किसे जाएगा, 370 खत्म करने का! मोदी और शाह को, या भाजपा को! सामान्य लोग इसका श्रेय इन्हें ही देंगे, लेकिन मैं इसका श्रेय दूंगा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिसकी संगठन क्षमता और विचारधारा में ऐसे हजारों मोदी पैदा करने की क्षमता है।
कर्म
गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को 'कर्म' के विषय समझाते हुए यह कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य हर समय कोई न कोई काम करता ही है और कर्म ना करने से बेहतर है कि कुछ न कुछ करते ही रहो। उसी से शरीर निर्वाह भी संभव है। तब अर्जुन भगवान से पूछते हैं कि भगवान आप तो सर्वव्यापी परमेश्वर हैं आपके पास तो किसी भी चीज का अभाव नहीं है तब आप क्यों कर्म करते हैं? भगवान इस प्रश्न का एक बहुत ही प्यारा, बहुत ही प्रशंसनीय जवाब देते हैं अर्जुन मैं जो जो कार्य करता हूँ, मेरा अनुकरण पूरा संसार करता है अगर मैं कार्य करता हूं पूरा संसार मेरे मेरा अनुकरण करते हुए वैसा वैसा ही कार्य करते हैं अगर मैं कार्य करना बंद कर दूं या निष्क्रिय हो जाऊं तो यह संसार भी निष्क्रिय हो जाएगा और संसार का नाश हो जाए इसलिए मेरा कर्म करना जरूरी है।
Raksha bandhan _Sista Love ..
Aap itni Acchi lagti hah ki tareef kare bina Rahah nai jata .. Aap ko zamee pe bhej k Khuda se bhi aasma pe raha nai jata ..
Pens are special
Pen is my best friend and whom I can't leave without her am incomplete.
बारिश: सुख़न और विडम्बना
बारिश एक एहसास है, सुख़न का आभास है। खेतीहर की आस है, अतः दिल के पास है। युवक-युवतियों का सावन, झूलों पर हो ये मन-भावन। नदी, झील,पोखर, झरने, तृप्ति मागता ये प्यासातन। इस सुंदर सुंदर अहसासों में, पंछियों की भींगी साँसो में। वो सुंदर सुख़न नही मिलता, जब पिंजरा उन्हें नही मिलता। जैसे जब मेरे घर की छत, बाबा के हांथो बनी हुई छत। रिसती हुई टपकती हुई छत, माँ ज़मी आसमां हुई छत। मुझे भीगने से बचाने के लिए, अपने लाड को सुलाने के लिए। मुझे लेटा कर एक कोने में, अम्मा लगी रही उचटने में। पानी घर भीतर भर आता, पर लगी रही वो मेरी दाता। मैं भीगा बहुत बुखार हुआ, क्या उसको कुछ नही हुआ। ©aman_g_mishra