बारिश एक एहसास है,
सुख़न का आभास है।
खेतीहर की आस है,
अतः दिल के पास है।
युवक-युवतियों का सावन,
झूलों पर हो ये मन-भावन।
नदी, झील,पोखर, झरने,
तृप्ति मागता ये प्यासातन।
इस सुंदर सुंदर अहसासों में,
पंछियों की भींगी साँसो में।
वो सुंदर सुख़न नही मिलता,
जब पिंजरा उन्हें नही मिलता।
जैसे जब मेरे घर की छत,
बाबा के हांथो बनी हुई छत।
रिसती हुई टपकती हुई छत,
माँ ज़मी आसमां हुई छत।
मुझे भीगने से बचाने के लिए,
अपने लाड को सुलाने के लिए।
मुझे लेटा कर एक कोने में,
अम्मा लगी रही उचटने में।
पानी घर भीतर भर आता,
पर लगी रही वो मेरी दाता।
मैं भीगा बहुत बुखार हुआ,
क्या उसको कुछ नही हुआ।
©aman_g_mishra
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