बस कुछ यूँ ही
पंचतत्व से सृजन
पंचतत्व में विलीन
ब्रह्मइच्छा के आगे सब कुछ हीन
फिर क्यूँ इतनी तृष्णा इतनी पिपासा
इश्वर से भी खुद को ऊँचा उठाने की मानवीय अभिलाषा!
क्या काम, क्रोध, मोह, मद की जिज्ञासा
बदल देती है जीवन की परिभाषा!
Paperwiff
by surabhisharma