एहसान
नादान जानकर ठुकरा दिया था जिसे,
उसकी मोहब्बत का हमको अंदाजा ना था।
उसकी दुआओं में असर रब की मेहर सा था,
वो कोई रहस्यमयी खजाना सा था।
ना हम समझ सके,
ना वो हाल-ए-दिल बयां कर सका,
क्यों इतना चुप चुप सबसे बेगाना सा था।
बना गया अपनी दुआओं का कर्जदार ऐसे,
चला गया छुड़ाकर हाथ बहुत दूर हमसे।
चाह कर भी रोक ना पाए हम,
कुछ इस तरह,
उसके कीमती एहसान को चुकाना जो था।
Paperwiff
by shilpi goel