गुलाब
गुलाब सदा रहा मेरे जीवन में,
साहस का प्रतीक बनकर।
जो मुस्कुराता रहा काँटों के बीच
इठलाता हुआ सदा ही।
अपनी सुंदरता और गुण से
सम्मोहित करता रहा सबको।
और मुरझाने के बाद भी सदा ही रहा,
सुरभि उसकी हवाओं के संग।
काश की गुलाब सी बन जाऊँ,
आह्लादित कर दूँ हर जीवन को
सुरभित हो अपने घर आँगन को महकाऊं।
Paperwiff
by ruchikarai