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आता सालःजाता साल
स्वरचित कविता शीर्षक-"आता साल:जाता साल" आते साल का करते हैं हम स्वागत खुशनुमा लगता है सदा ही नवागत जाते हुए को विदा करके खाली हो जाते हैं हाथ तन-मन से लिपटी रह जाती हैं ढेर सारी बात खट्टी-मीठी,दु:खद- सुखद तरह-तरह की यादें टूट गया माला का मोती कहाँ करें फरियादें किलकारियों से चहकता था आंगन खुशबू खुशी की महकता था जीवन आंखों का पानी अविरल बहाना टूटा सुखों का मेरा आशियाना कठिन वक्त था बड़ा, गुजरा गमी में सूखी है बगिया दुखों की नमी में मेरे आसमां की वो नन्ही परी न जाने कहाँ बादलों में गिरी लौटा दो मुझे ,है फरिश्ता अकेला जमीं पर लगा दो फिर खुशियों का मेला दुआ मांगती हूं मैं रब से सदा सुखों से न करना किसी को जुदा विगत वर्ष से मैं लगाऊं गुहार बिगड़ी बनाना,सुनना पुकार जाते हुए दिन महीनों के पल तन-मन को करके गए हैं विकल जीवन-समर में करेंगे संघर्ष पक्का यकीं है छुएंगे हम अर्श लेखन की दुनिया में रखना मशगूल फूलों से सुख देना चुभाना न शूल रचनाकार- डा. अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली

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by anjugahlot

आता सालःजाता साल(Reel)